Monday, May 31, 2010

पर अफ़सोस! तुम नही आयीं...

शायद मेरे सुनने मे ही कमी होगी,
या ये शाम बिन कहे ही ढल गयी होगी,
तुम आ जाते तो ज़रूर कह ही देता,
शायद कुछ देर दर्द सह ही लेता!

तुमने ताज़ा किए जो जख्म सवेरे मे,
शाम मरहम लगाने तो आ जाती,
दर्द मे मेरे कुछ कमी आती,
याद बरबस पुरानी आ जाती!

पर अफ़सोस! तुम नही आयीं,
साथ अपने दवा नही लायी,

आज फिर ज़ख़्मों से बात कर लूँगा,
अपने कुछ दर्द उनसे कह दूँगा,
उनके जी की सुनूँगा जी भरकर,
अपने जी की कहूँगा जी भरकर,

पर ये चलता रहा अगर यूँ ही,
कुछ दिन और तो फिर समझ लेना,
शायद ये हो कि भूल जाऊं तुमको,
और मुझे हो जाए प्यार ज़ख़्मों से,

फिर जिंदगी सीखूंगा खुद उन्हे सीकर,
उनको अपना अभिन्न हिस्सा कर....!!


Saturday, May 29, 2010

सुरक्षा व्यवस्था

आज एक बड़े नेता के आने की,
तैयारी मे जुटा है,
शहर का सारा प्रशासन,

कई जिलों की फोर्स,
की गयी है तैनात,

सुरक्षा के सारे इंतज़ाम भी है,
एकदम चाक-चौबंद,

वहाँ कार्यक्रम स्थल पर,
लगाया गया है एक,
मेटल डिटेक्टर भी,

पर मुझे यकीन है कि,
यह मेटल डिटेक्टर भी,
नही पहचान पाएगा उन हथियारो को,
जो बमों के रूप मे,
आदमी के दिमाग़ मे रखे है,
उस ए-के-४७ को भी,
जो उसकी क़लम मे रखी है,

या वो ये उस आर.डी.एक्स को भी,
ना पहचान पाए
जो की छिपा है आम आदमी की,
वेदना मे,

इतनी सुरक्षा व्यवस्था के वावजूद भी,
क्या रोका जा सकता है विस्फोट,
दबी हुई वेदनाओं का,
सताई हुई भावनाओं का,

और अगर वो आने वाला,
इतने विस्फोट से भी ना मरे,
तो पूंछना एक सवाल,
खुद से कि क्या,
वास्तव मे वो जिंदा है भी,या नही..?
कि जिसे मार सकते है,
असली हथियार,

तो फिर बताओ,
ये ग़रीबों का पेट काटकर,
इतनी सुरक्षा व्यवस्था क्यूँ..?

Saturday, May 22, 2010

*खूबी*

आज राकेश बहुत खुश था.पिछले कई दिनों से जब से उसे नौकरी के साक्षात्कार के लिए बुलावा पत्र मिला था,अपनी पढाई ख़त्म होने के बाद एकदम से गुमशुम सा रहने वाला राकेश अब फिर से अपने पढाई के दिनों की तरह ही चहकने लगा था|पूरे सप्ताह भर वो अपने शहर के लगभग सभी मंदिरों में जा-जाकर के भगवान से इस बार सफलता दिलाने की प्रार्थना की थी...आज शाम में जब वो मंदिर में प्रसाद चढ़ाकर घर लौटा तो अपनी बड़ी बहन,जिसकी कई बार शादी सिर्फ दहेज़ न दे पाने के कारन ही टूटी थी,तथा अपनी दो छोटी बहनों को जिन्होंने अभी कुछ महीने पहले ही फीस न भरने के कारन पढाई छोड़ दी थी, और अपनी माँ को जो अक्सर बीमार रहती थी....सबको बुलाकर प्रसाद दिया और कहा की अब भगवान हमारे सभी दुखों को दूर कर देगा|तभी उसके पिताजी भी हाथ में नए जूतों का थैला लेकर आये और राकेश से कहने लगे...."ये लो नए जूते,मैंने आज तुम्हारे पुराने फटे हुए जूते देखे तो शर्मा जी से उधार रुपये लेकर लेते आया,तुम्हारी नौकरी मिलेगी तो पुरानी उधारी के साथ ये भी चुका देंगे.|"
इसी भांति सभी आज घर में बहुत दिनों के बाद आये इस खुशनुमा माहौल में सोने चले गए,पर राकेश को नींद कहा थी,वो तो कल साक्षात्कार के बाद मिलने वाली नौकरी को लेकर रात भर सपनो के असमान में गोता लगाता रहा|भोर में जैसे ही उसकी आंख लगी थी वैसे ही उसकी माँ ने जगा दिया|वो भी जल्द तैयार होकर लगभग उसने जितने भी भगवान के नाम सुन रखे थे सबको मनाने लगा|फिर घर में सबसे आशीर्वाद लेकर और अपने सभी अंकपत्रो के साथ (सभी प्रथम श्रेणी में )तथा अन्य जरूरी कागजात लेकर साक्षात्कार देने के लिए घर से चला....|

यहाँ साक्षात्कार बोर्ड के सदस्यों के द्वारा पूंछे गए अधिकतर सवालो के सही जवाब देता रहा|तभी एक सदस्य ने आई हुयी एक फोन काल को सुनकर राकेश से कहा,"मि० राकेश,आप इस नौकरी के लिए एकदम सही उम्मेदवार थे,परन्तु अब एक ही समस्या है जिससे तुम्हे ये नौकरी नहीं मिल पायेगी"

"क्या समस्या है सर..?"राकेश ने चौंकते हुए पूंछा|

सदस्य ने कहा "मि०राकेश मुझे कहते हुए दुःख हो रहा है कि ये नौकरी विकलांग श्रेणी के लिए आरक्षित कर दी गयी है|"

इतना सुनते ही राकेश ने अपने पेन की निब से अपनी एक आंख फोड़ ली,और बोला "सर,अब तो मै १००% विकलांग हूँ|सर अब तो नौकरी मुझे मिल जाएगी न..?"

"अभी भी नहीं  राकेश ,क्यूंकि अब तुम्हे विकलांगता प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए कम से कम ४ से ६ महीने सरकारी दफ्तरों में भटकना पड़ेगा और तब तक तो किसी और को ये नौकरी मिल जाएगी|" सदस्य ने उत्तर दिया|

नौकरी न मिलने की बात सुनकर राकेश को इतनी पीड़ा हुयी जितनी की उसे आँख फूटने से भी नहीं हुयी थी.|

और वह यह कि,"हे भगवान,तुमने मुझे इतनी खूबियाँ दींथी,अगर मुझे विकलांग बनाकर के एक "खूबी" और दे देते तो तुम्हारा घट क्या जाता..?कहते हुए बेहोश हो गया.....|
तभी पास में ही खड़े एक चपरासी ने आसमान में देखते हुए बोला."भगवान तुमने रावन,कंस आदि कई राक्षसों को तो जीता पर भारत की व्यवस्था से हार ही गए..."

*****सानू शुक्ल*****

Thursday, May 20, 2010

वन्दे मातरम

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