Thursday, May 20, 2010

वन्दे मातरम

जय श्री राम Jai Shri Ram जय श्री राम Jai Shri Ram जय श्री राम Jai Shri Ram
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जय श्री राम Jai Shri Ram जय श्री राम Jai Shri Ram जय श्री राम Jai Shri Ram
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6 comments:

  1. off ohh ek aur raashtrwadi to janaab sawaal ka jawab bhi de do !!!

    अगर कोई राष्ट्रवाद की परिकल्पना में विश्वास रखता है और यह विश्वास करता है कि वह राष्ट्रवाद के संघी पैमाने पर खरा उतर कर ही रहेगा तो फ़िर उसका पुनर्जन्म हो ही नहीं सकता. और अगर वह पुनर्जन्म में अक़ीदा रखता है तो फ़िर वह एक राष्ट्रवादी हो ही नहीं सकता.

    मिसाल के तौर पर

    अगर सावरकर जी का पुनर्जन्म अफ़गानिस्तान में तालिबान समर्थक में हुआ तो इस बात की गारंटी कौन लेगा कि भारत के ख़िलाफ़ किसी भी आतंकी घटना में वे लिप्त नहीं होंगे??? और अगर ऐसा हुआ तो उस राष्ट्रवाद का क्या होगा जिसे वीर सावरकर अपने कथित खून पसीने से सींचा था !!!???

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  2. अरे साहब,ये राष्ट्रवाद शब्द सुनकर आप इतना भड़कते क्यूँ है...?ये शब्द किसी के बाप की बपौती तो है नही की उन्होने कहा तो हम नही कहेंगे..!!..रही बात पुनर्जन्म की तो हमारे यहा ये भी मान्यता है की जो अच्छे कर्म करता है उसे मोक्ष मिलता है...और वापस दुनिया मे आना भी हुआ तो नेक इंसान बनकर ही आता है...हमारे यहा आप अक्सर ये कहावत सुनते रहे होंगे किसी अच्छे व्यक्ति के बारे मे...लोग अक्सर ये कहते है की उसने ज़रूर पिछले जन्म मे कोई पुण्य किए होंगे..

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  3. भाई जी मई तो उस राष्ट्रवाद को जनता हू की जब शहीद अशफ़ाक़ उल्ला ख़ान को फाँसी के लिए ले जया जाने लगा तो उनके मित्र ने कहा की.."बस डर गये अशफ़ाक़..?ये चेहरा क्यूँ लटका हुआ है.?" तो अशफ़ाक़ उल्ला ने उत्तर दिया.."पंडित जी मई फाँसी से नही डर रहा हू...बल्कि परेशन हू इसलिए की आपके धर्म ने पुनर्जन्म को मान्यता दी है...आप हज़ारो बार जन्म लेकर इस भारत माता की सेवा कर सकते है...पर मेरा धर्म पुनर्जन्म की इजाज़त नही देता..मई सिर्फ़ एक ही जीवन भारत माता को समर्पित कर पाया,,,"

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  4. और मई भाई फ़ारूक़ सरल के उस जज़्बे को भी नमन करता हू जिसमे उन्होने कहा,,,

    "हूँ मुसलमान इस पर वेहम कीजिए,
    जाती और धर्म का ना भरम कीजिए,
    जब ज़रूरत पड़े देश को खून की,
    सबसे पहले मेरा सर कलम कीजिए.."

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  5. .मई ऐसे दो भाइयो को जनता हू जिनकी आपस मे कई सालो से नही बनती...एक दूजे से मुहाबोली तक नही है..पर जब कोई फ़ैसला लेना होता है या फिर परिवार पे कोई बाहरी या कैसा भी संकट आता है तो वे दोनो ऐसे वार्ताव करते है जैसे इनसे ज़्यादा प्रेम तो और किसी भाइयो मे नही होगा......

    ठीक है हमारी विचारधाराए,हमारे रीति रिवाज़ अलग अलग है...हमारी मान्यतेए अलग है..पर जहा देश की बात आती है वहाँ तो एक होना जाना चाहिए सारी राजनीति और पूर्वाग्रहो को छोड़कर...

    आज समानता की नही सामंजस्या की ज़रूरत है

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