Saturday, June 5, 2010

मेरा नाम अब मेरे पास था

शाम भी ढलने को थी
मन हो रहा था बोझिल मेरा
तो सोचा क़ि क्यूँ ना जाऊं
समुंदर के तट पर
और वहाँ डूब रहे सूरज को,
निहारूं देर तक,
खेलूँ ताजी हवा के संग
फिर मैं वहाँ गया भी|
पर अरे ये क्या,
यहाँ तो मेरा नाम लिखा है किसी ने
इस रेत के घरौंदे के पास,
जो कि बनाया है किसी ने
अपने पैर के पंजों का सहारा लेकर,
मैं उसे देख ही रहा था कि तभी
अचानक आ गयी वहाँ
समुंदर की एक तेज लहर,
और बहा ले गयी अपने साथ ही
वह मेरा नाम भी उस घरौंदे के साथ ही
फिर बहुत देर तक सोचता रहा कि
किसने लिखा होगा ये नाम मेरा...

तभी एकदम से
तुम्हारे इस तट पर रोज
आने की आदत का ख़याल आया
और मन मे फिर वही
पुरानी यादों का उबाल आया|
फिर तो मैं लगा ढूढ़ने
रेत के हर उस कण को
जो शरीक था
मेरे नाम की लिखावट मे
और कुछ मशक्कत के बाद ही
मैने ढूँढ ही लिए वो सारे कण..

पर तुम्हे होगा अब पूछना
एक सवाल अपनी आदतानुसार ही
की ऐसा मैने किया कैसे..?
ये तो बहुत मुश्किल है
जो खो जाए कण रेत के
ढूँढ ले कोई उन्हे
वापस फिर से..!!

पर मेरे लिए तो ये
बहुत ही आसान निकला
मैने उस जगह की सारी रेत को इकट्ठा किया
फिर हर एक कण की महक को महसूस किया
और फिर जिस जिस कण मे भी
आयी महक-ए-हिना मुझको
मैं उन्हे चुनता गया
ऐसे ही कुछ देर बाद ही
वो मेरा नाम जो तुमने लिखा था
अब मेरे पास था...!!

4 comments:

  1. behad khoobsoorat.........kal ke charcha manch par aapkipost hogi.

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  2. dhanywad arya ji

    apka bahut bahut dhanywad vandana ji

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  3. Ajee mahak to kan-kan main thee....aap ko chunene ki bhee zaroorat nahee thee....
    bahut achaa khyaal...

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