कल शाम में दूरदर्शन पर महामहिम राष्ट्रपति जी का देश के नाम सन्देश सुना ...अगर उसमे की एक दो बातो को छोड़ दिया जाये तो उनका पूरा का पूरा भाषण उसी प्रकार हवाई भाषण था जैसे की उनकी कुछ महीने पहले हुयी सुखोई विमान यात्रा ...काश उन्होंने भारत के किसी ग्रामीण अंचल में बैलगाड़ी पे यात्रा की होती तो उनकी बाते भी जमीन से जुडी होती...!!
बची खुची कसर हमारे प्रधानमंत्री जी ने आज सवेरे लाल किले की प्राचीर पर से देश को संबोधित करके पूरी कर दी ...देश को किस प्रकार से अपनी बातो में बहलाया जा सकता है ये इन दोनों अभिभाषनो से देखा जा सकता है ...
हमारा भारत १५ अगस्त १९४७ को असंख्य बलिदानों के कारन आजाद हुआ परन्तु उसके
तुरंत बाद ही अंग्रेजो की मानसिक औलादों ने भारत को पुनः गुलाम बना लिया
और अबकी से ये गुलामी पहले की गुलामी से बहुत अधिक खतरनाक है और अब तक ये
गुलामी पूरे ६३ साल की हो गयी है और लगातार जारी है..!
पर अब विडम्बना और भारत माँ की लाचारी ये है कि उस समय जब अंग्रेजो ने गुलाम बनाया था तब आजादी के लिए संघर्ष करने वाले बहुत से महामानव हुए और भारत को आजाद करवाया भी पर अब आज कोई माँ भारती को आजाद करने के लिए आगे नहीं आ रहा है ..!
शायद सभी लोग ने अपने तथाकथित चाचा की वो बात जो की उन्होंने आजादी मिलने के बाद युवाओ से कही थी कि अब आप लोग अपने अपने कामो में मसलन अपनी पढाई ,काम धंधे में लौट जाइये और देश की चिंता हम पर छोड़ दीजिये ...और ऐसा हुआ भी ...लोगो ने सारा भार उनपर छोड़ दिया और खुद निश्चिन्त होकर अपने अपने कामो में व्यस्त हो गए ...और आज तक उन कुटिल चाचा के परिवार ने भारत को गुलाम बनाया हुआ है ..!!
भगवान बुद्ध ने कहा था कि परंपरा या अनुभव के नाम पर किसी कि बात पर भरोसा न करो | सोचो कि तुम्हारे हित में क्या है और कौन सा रास्ता सबके लिए कल्याणकारी है | वाही रास्ता चुनो |फैसला उसी सोच से निकलेगा |
उन्ही के समकालीन एक चीनी विद्वान सु...न सु ने अपनी पुस्तक युद्धकला में कहा था कि अंततः जीत उसकी होती है जिसके पास ससूचनाये होती है ,जो सोचता है |
लगभग ढाई हजार साल पहले बुद्ध और सुन सु ने सोचने कि क्षमता पर जोर दिया था ,सोचने कि आजादी कि हिमायत कि थी |
आजाद भारत में सबसे बड़ा और पहला झटका इसी सोच को लगा | उसने सवाल पूंछना बंद कर दिया | अर्थशाष्त्री अमर्त्य सेन जिसे "बहसबाज भारतीय " कहते है वह संख्या में निरंतर कम होता गया और लगातार कम होता जा रहा है ...!
उन्ही के समकालीन एक चीनी विद्वान सु...न सु ने अपनी पुस्तक युद्धकला में कहा था कि अंततः जीत उसकी होती है जिसके पास ससूचनाये होती है ,जो सोचता है |
लगभग ढाई हजार साल पहले बुद्ध और सुन सु ने सोचने कि क्षमता पर जोर दिया था ,सोचने कि आजादी कि हिमायत कि थी |
आजाद भारत में सबसे बड़ा और पहला झटका इसी सोच को लगा | उसने सवाल पूंछना बंद कर दिया | अर्थशाष्त्री अमर्त्य सेन जिसे "बहसबाज भारतीय " कहते है वह संख्या में निरंतर कम होता गया और लगातार कम होता जा रहा है ...!
लोगो ने यह मानना शुरू कर दिया है कि जो काम हमारी सरकारे कर रही है वो सही है या गलत है या फिर उसका हमारे से सीधा समंध नहीं है तो फिर मै उसकाप्रतिकार क्यों करू....भले ही वह काम देश और समाज को काफी हानि पंहुचाने वाला ही क्यों न हो ...लोगो को ये सोच तो विकसित करनी ही होगी कि हमें सिर्फ अपने लिए ही नहीं अपितु अपनो के लिए भी जीना होगा..!!