Tuesday, June 29, 2010

कुछ हाइकु कविताये

(१) पानी बरसा
महक उठी मिटटी
हरी हुयी धरा |

(२) शौर्य  पर्याय
पूछ लिया बच्चे से
बोला भारत|

(३) कल फिर से
मर गया है भूखा
कहाँ है दानी?

(४) सूर्य निकला
फिर कमल खिले
धरा बौरायी|

(५) हुआ अँधेरा
धरा पे छाये व्योम
यादों पे जुल्फें |

(६) नेता आये
तोरण द्वार बंधे
बरसे वादे|

(७) बसंत आया
गुलशन महके
पंक्षी  चहके|

(८) तन बिसरा
मन भी भूल गया
तू जब आया |

(९) रिक्शे वाले को
गाली दी सवारी ने
गुस्सा  आया|

(१०) बोलो बोलो तो
अरे कुछ बोलो तो
बोला जाने दो |

Sunday, June 27, 2010

ऐ मेरे क्रोध

ऐ मेरे क्रोध
तुम कब आये
और आकर  चले भी गए
पर छोड़ गए पीछे निशान
अपने आने के,

पर अरे भले आदमी
कम से कम एक पाती ही भेज देते
अरे छोडो ये आधुनिक जमाना है
कम से कम एक एस.एम्. एस. ही कर देते
जिससे  अपने आने की  खबर  देते
ताकि मै हो जाता सचेत
तुम्हारे आने से पहले ही
तुम्हारी आव-भगत करने को
और शायद तब बच जाता
ये नुकसान होने से
जो हुआ है मुझे
तुम्हारे बिना बताये आने से,,,!!

Friday, June 25, 2010

इस भारत भूमि पर पुनः पधारो

दूर तक फैला घना कुहासा है,
देता कुछ नहीं दिखाई है,
फिर आज तेरे बच्चों ने ही,
ऐ भारत माँ तेरी हंसी उड़ाई है,
संस्कृतियाँ हो रही शून्य है,
पश्चिमी झंझावातों में पड़कर,
जो चले आ रहे मानव मूल्य सदियों से,
बिक रहे आज वो कौड़ी कौड़ी,
हाय यहाँ कितने ही आक्रांताओं ने,
तुझ पे मन भर के अत्याचार किये,
किन्तु सहे तूने धीरज धर,
क्यूंकि तेरे बच्चे थे उनसे डटकर जूझे ,
पर आज त्रस्त है तू अपनी निज संतति से,
और व्यथित तू उनके काले कृत्यों से,
कर रही पुकार तू बस यही बार बार,
हे तिलक बोस, अशफाक, भगत,..
अपनी माँ क़ी सुधि धारों,
करने घावों से मुक्त मेरे तन को,
इस भारत भूमि पर पुनः पधारो...!!

Tuesday, June 22, 2010

मेरी मौत भी गिनना

एक मंत्री जी ने मंच से
अपनी सरकार की,
सौ दिन की उपलब्धियां
यथाशक्ति गिनायीं
तब नीचे  खड़ी जनता ने भी,
अपनी आदत  के अनुसार ही
पुरजोर  तालियाँ बजायीं
मंत्री जी जब थक कर नीचे उतरे
तभी एक बूढी माँ
किसी तरह सभी  का मान मुनौव्वल करती हुयी
मंत्री जी तक पहुंची,
और उनसे कहने लगी उनके भाषण से एकदम हटकर,
वोह बोली साहब..
आटा  इतना महंगा है..
सब्जी इतनी महँगी है,
दाल इतनी महँगी है,
चूल्हा जलाने  के लिए लकड़ी इतनी महँगी है,
पर देखो तो आपके राज में साहब,
जीवन कितना सस्ता है....
और तुम जानते हो साहब,
मैंने अपनी पूरी जिंदगी भर
सस्ती चीजो में ही गुजारा किया है
तो अब तुम ही कहो साहब..
क्या अब मै जीवन त्याग दूँ...?
और हा  साहब
तब तुम अगली  बार 
अपनी उपलब्धियों  में
मेरी मौत भी गिनना...!!





Sunday, June 20, 2010

द्वादश ज्योतिर्लिंग


1-सोमनाथ

* इसा पूर्व ६४९- भव्य मंदिर था| समुद्री डाकुओं द्वारा सोमनाथ मंदिर लूटा गया|
* इसवी ४०६-सोमनाथ अस्तित्व में(प्रादुर्भाव)
* सन ४८७-शैव भक्त पल्लवी द्वारा पुनर्निर्माण (राजा भोजराज परमार)
* सन १०२५- महमूद गजनवी द्वारा आक्रमण |
* सन ११६९- राजा कुमार पल द्वारा पुनर्निर्माण कराया गया |
* सन १२९७- अलाउद्दीन खिलजीद्वारा आक्रमण|
* सन १३९०- मुजफ्फर शाह प्रथम द्वारा आक्रमण |
* सन १४९०- मोहम्मद बेगडा द्वारा आक्रमण |
* सन १५३०- मुजफ्फर शाह द्वितीय द्वारा आक्रमण |
* सन १७०१- औरंगजेब द्वारा आक्रमण |
* सन १७८३- महारानी अहिल्याबाई द्वारा मंदिर बनबाया गया |
* ११ मई सन १९५१-सरदार बल्लभभाई पटेल क़ि अगुआई में डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा प्राण प्रतिष्ठा |
* इब्त अशीर ने रख रखाव एवं पूजन अर्चन के बारे में लिखा है क़ि दास हजार गाँव क़ि जागीर मंदिर के लिए निर्धारित है |मूर्ति के जलाभिषेक के लिए गंगा जल आता है|एक हजार पुजारी पूजा करते है|मुख्या मंदिर छप्पन जडित खम्भों पर आधारित है|


२-मल्लिकार्जुन

* शैल पर्वत पर स्थित |
* पारवती-मल्लिका शिव-अर्जुन |
* श्री शैल पर्वत कर्नूल जिला, आंध्र प्रदेश|
* लगभग दो हजार वर्षपुराना|
* भगवन शंकर ने अपने रुष्ट पुत्र कार्तिकेय को मानाने के किये शिव-शक्ति के रूप में यहाँ पधारे|
* यहाँ पारवती को माधवी या भ्रमराम्बा के नाम से पुकारा जाता है|


३- महाकालेश्वर

* क्षिप्रा नदी पर श्थित|
* कनक,श्रुंग,कुम्भ स्थली,कुमुद्वती आदि नामो से जाना जाता है|
* आचार्य श्रेष्ठ संदीपनी का आश्रम|
* भगवन शंकर के द्वारा त्रिपुरासुर का वध |
* कुम्भ स्थल प्रति बारहवें वर्ष |
* मौर्यकाल में उज्जेयनी मालवा प्रदेश की राजधानी |
* सम्राट अशोक के पुत्र महेंद्र व् पुत्री संघमित्रा का प्रवज्य धारण |
* भर्तहरी,विक्रमादित्य ,भोज ने वैभव बढाया |
* कालिदास वररुचि,भारवि,आदि कवियों-लेखको एवं वराहमिहिर का कार्यक्षेत्र |


४-ओंकारेश्वर

* ओंकारेश्वर पर्वत पर,नर्मदा नदी का तट |
* मान्धाता द्वीप या शिवपुरी कहा जाता है|
* ओंकारेश्वर एवं अमरेश्वर या ममलेश्वर के रूप में जाना जाता है |
* विन्ध्याचल पर्वत ने भगवन ओंकारेश्वर की अर्चना की |
* शिव-विग्रह के पास में ही पारवती की और मंदिर के परकोटे में पञ्चमुखी गणेश स्थित |


५-केदारनाथ

* सत्य युग में उपमन्यु ने यहाँ भगवन शिव की आराधना की|
* द्वापर में पांडवो ने यहाँ तपस्या की|
* नर-नारायण ने शिव की आराधना की|
* अर्जुन ने दिव्यश्त्रों की प्राप्ति के लिए तपस्या की|
* समुद्र तट से ६९४० मी० की ऊँचाई पर स्थित |
* मन्दाकिनी केदारनाथ से चलकर रुद्रप्रयाग में अलकनंदा मिलती है |अंत में भागीरथी में मिलकर पतित पावनी गंगा बन जाती है|
* गौरी कुन्ड में माँ पारवती ने स्नान किया |


६-भीमाशंकर

* गोहाटी ब्रम्हपुर पर्वत पर स्थित |
* मूलनिवास सह्याद्री है|भीमा नदी का तट|
* डाकिनी शिखर भी कहते है|
* नाना फडनवीस बनवाया नया मंदिर |
* पुराना नाम डाकिनी था


७- विश्वनाथ

* काशी में गंगा नदी पर स्थित है |
* शक्ति पीठ ,ज्योतिर्लिंग तथा सप्तपुरियों में से एक |
*वरुना नदी एवं असी नदी के मध्य स्थित इस कारन वाराणसी नाम pada
* बौद्ध तीर्थ सारनाथ पास में स्थित है |
* शैव ,शाक्त , वैष्णव ,बौद्ध ,जैन पंथों के उपासकों का काशी में संगम|
* सातवें तथा तेइसवें तीर्थंकरों का यहाँ प्रादुर्भाव हुआ |
* आदि शंकराचार्य ने अपनी धार्मिक दिग्विजय यात्रा प्रारंभ क़ि |
* कबीर ,रामानंद ,तुलसीदास सद्रश ने कर्न्भूमि बनाया |
* तीन विश्वविद्यालय तथा कई संस्कृत अध्ययन केंद्र |
* मणि कर्णिका घाट ,दशाश्वमेघ घाट,केदार घाट,हनुमान घाट एवं हरिश्चंद्र घाट प्रमुख है |
* भारत क़ि सांस्कृतिक राजधानी |
* औरंगजेब ने शिव के मंदिर ध्वस्त कराये |भाग्नाव्शेशो पर मस्जिद बनवाई|


८-त्रयम्बकेश्वर

* ब्रम्ह्गिरी पहुँचने के लिए ७०० सीढ़ियों क़ि यात्रा तय करनी पड़ती है |
* ब्रम्हागिरी पर्वत एवं गोदावरी,गौतमी तट पर स्थित|
* सिद्ध ऋषि गौतम क़ि तपस्थली |
* मुख्या मंदिर में तीन विग्रह ब्रम्हा,विष्णु,महेश |
* मुख्या मंदिर के दूसरी ओर राम-लक्षमण कुन्ड स्थित है |
* कुम्भ स्नान के समय सभी तीर्थ गोदावरी तट पर आकार विराजमान हो जाते है |


९- वैद्यनाथ

* वैद्यनाथं चिता भूमौ परल्यम वैद्यनाथं च के अनुसार जसीडीह देवधर स्थान पर स्थापित|
* त्रेतायुग में रावन द्वारा तपस्या |
* शिवकुंड नमक सरोवर |
* कार्तिक माघ और फाल्गुन क़ि पूर्णिमा व चतुर्दशी को मेला लगता है |
* पूर्व रियासत हैदराबाद के गाँव परली के शिवमंदिर को इस ज्योतिर्लिंग का स्थान होने का श्रेय प्राप्त है|
* परली स्थित ज्योतिर्लिंग परभानी के पास एक पर्वत शिखर पर बने मंदिर पर विराजमान है |


१०-नागेश्वर

* द्वारिका के पास दारुक नमक वन के पास|
* आस-पास वेणी नाग ,धौले,कालिया जैसे नागों के स्थल |
* इस ज्योतिर्लिंग क़ि स्थापना एक शिवभक्त सुप्रिया व्यापारी से सम्बंधित है |
* शिवपुराण के अनुसार द्वारिका के पास स्थित नागेश्वर क़ि ज्योतिर्लिंग के रूप में पुष्टि दृढ होती है |


११- रामेश्वरम

* भगवन श्रीराम द्वारा स्थापित|इसी नाते रामेश्वरम नाम पड़ा |
* चारो धमो में से एक धाम |
* लक्षमनेश्वर शिव मंदिर,पंचमुखी हनुमान,श्री राम जानकी मंदिर |
* रामेश्वर के परकोटों में २२ पवित्र कूप है |
* लंका पर चढ़ाई से पूर्व भगवन श्री राम ने यहाँ पर शिव पूजन कर आशीर्वाद प्राप्त किया |
* पवन पुत्र हनुमान जी के द्वारा कैलाश से लाया गया शिवलिंग भी पास में ही स्थापित है |
* अश्वत्थामा द्रौपदी पुत्रों क़ि हत्या का प्रायश्चित करने यहाँ आया था |
* रावन के वध के बाद भगवन श्री राम द्वारा ब्रम्ह हत्या के प्रायश्चित का स्थान |
* महाशिवरात्रि,वैशाख पूर्णिमा,ज्येष्ठ पूर्णिमा,अष्टमी,नवरात्र ,रामनवमी,वर्ष प्रतिपदा तथा विजयदशमी आदि पर्वों पर विशेष पूजा |


१२-घुमेश्वर

* घ्रीश्नेश्वर नाम से भी जाना जाता है |
* बेसल गाँव में दौलताबाद,एलोरा गुफा के डेढ़ किलोमीटर पर स्थित |
* महारानी लक्ष्मीबाई ने अतिसुन्दर मंदिर बनबाया |
* मंदिर के पास शिवालय नामक पवित्र सरोवर स्थित |
* पास में ही शहस्रलिंग,पातालेश्वर ,व सुरेश्वर के मंदिर स्थित है |
* घुमेश्वर क़ि कथा घुश्मा और सुद्रेहा पर आधारित है |
                 (घुमेश्वर महिमा )
  " ईद्रषम चैव लिंगम च द्रष्टव पाये: प्रमुच्यते|
      सुखं संवर्ध्ते पुंसां शुक्ला पक्षे यथा शशि ||"

Tuesday, June 15, 2010

आख़िर वो शख़्श कौन था

कल शाम एक बार फिर,
मिला उससे
फिर वही उसी गर्मजोशी के साथ
जैसे मिलता था
पहले कभी
एक बार फिर शुरू हुयी कुछ बातें
कुछ पुरानी
कुछ नयी,
कुछ कही
कुछ अनकही,
फिर ऐसे ही उस
मुलाकात के बाद
लौट आया अपने घर
और फिर रात भर आँखों से नींद जाती रही
केवल सोंचता रहा
उस मुलाकात के बारे में,
क़ि उसने भी मुलाकात के दौरान
कई बार 'मै' कहा,
और मैंने भी कई बार 'मै' कहा,
और अब मै परेशान हूँ क़ि
आखिर ये शख्श 'मै' है कौन..?
जिसने कल मुझ दोनों को
'हम' नहीं होने दिया...!!

Saturday, June 12, 2010

आज इच्छाएं मेरी उड़ रही है तितली बनकर








आज इच्छाएं मेरी
उड़ रही है
जैसे उडती तितलियाँ हो,
वो ठहरती ही नहीं
किसी पल
किसी एक फूल  पर
और ये मेरा नादाँ मन
कर रहा है कोशिश पकड़ने की
उन तितली बनी इच्छाओं को
एक अबोध बालक की तरह
और फिर चाहता की कैद कर ले उन्हें
जिससे वो न उड़ सके दुबारा,
पर हर बार की तरह ही
इस बार भी
हो रहा है मन असफल मेरा
न तो वह बच्चा ही पकड़ पा रहा है तितलियों को
और न ही ये मेरा मन मेरी उन  इच्छाओं को
जो खुद भी नाच रही है
और नचा रही है मुझे
कब से..?
जब से आंख खोली है तबसे...!!


Tuesday, June 8, 2010

गाँधी जी का तीन बन्दर का सिद्धांत-एक नकारात्मक सिद्धांत

वैसे तो गाँधी जी ने अपनी जिंदगानी में कई सिद्धांत दिए है पर उनका एक ऐसा सिद्धांत  जिस पर आज तक देश विदेश में कई जगह उसका उपयोग कई लोंगो ने विभिन्न विभिन्न रूप में किया है...और वो सिद्धांत है गाँधी जी का तीन बंदरों का सिद्धांत.हम सभी  इस सिद्धांत को बचपन से पढ़ते आये है,
खासकर मुझे इस सिद्धांत  के इन तीन बंदरों ने काफी बहलाया है बचपन में.....जब मै कुछ समझ नहीं पlता था बस इन्ही तीन बंदरो की उल जुलूल हरकतों को किताब में देखा करता था..

हा तो मै सिर्फ ये कहना चाहता हूँ की गाँधी जी का ये सिद्धांत सिर्फ और सिर्फ नकारात्मकता पर आधारित है...कैसे है ये तो मै बताऊंगा पर इससे पहले आइये एक बार फिर हम इस सिद्धांत को ताज़ा कर ले....


गाँधी जी का तीन बन्दर सिद्धांत--
गाँधी जी के अनुसार तीन बन्दर है....अपनी सहजता के लिए हम उनका नामकरण कर रहे है.|मान लिया ये तीन बन्दर है जिनका नाम है रामू ,श्यामू,और कालू |

तो गाँधी जी के अनुसार पहला बन्दर जिसे कि हमने रामू कहा है, उसने  अपने हाथ अपने कानों पे रखे  है और वो ये सन्देश दे रहा है की बुरा मत सुनो |
दूसरा बन्दर यानी कि श्यामू है जिसने अपनी आँखों पर हाथ रखे   है और वो ये सन्देश दे रहा है की बुरा मत देखो |
तीसरा बन्दर जो कि कालू है और उसने अपने मुंह पर हाथ रखे है और वो सन्देश दे रहा है कि बुरा मत बोलो |

ये तो हुआ तीन  बन्दर का सिद्धांत गाँधी जी के अनुसार |

पर मेरे हिसाब से ये सिद्धांत एकदम नकारात्मक है.....और ऐसा कहकर मै गाँधी जी पर कोई आक्षेप भी नहीं करना चाहता हूँ | बेशक वो एक महँ व्यक्ति थे|
अब सवाल ये है की अगर ये सिद्धांत नकारामक है तो फिर सकारात्मक सिद्धात  क्या हो सकता था...?
तो मेरे अनुसार  इसी बात को सकारात्मक तरीके से इस प्रकार कहा जा सकता था क़ि गाँधी जी केवल एक बन्दर ही बैठाल देते और जिसके हाथ सामने अपनी मेज पर रखे होते.......और गाँधी जी उस बन्दर से  ये सन्देश देते क़ि अच्छा सुनो, अच्छा देखो, और अच्छा बोलो..|

दूसरी बात जो मुझे गाँधी जी के इस सिद्धांत में सही नहीं  लगी वो ये क़ि ...

 
१- क़ि यदि वो बन्दर जिसे हमने रामू कहा है और जिसने अपने हाथ अपने कानो पे रखे है और गाँधी जी के अनुसार वो बुरा नहीं सुने........तो भईया इस बात की क्या गारंटी है क़ि वो बन्दर बुरा नहीं देखेगा और बुरा नहीं बोलेगा..?

२- दूसरा जो बन्दर है जिसे क़ि हमने श्यामू कहा है और जिसने अपने हाथ अपनी आँखों पे रखे है औए गाँधी जी के अनुसार वो बुरा नहीं देखे....तो भईया इस बात की क्या गारंटी है क़ि वो बन्दर बुरा नहीं सुनेगा और बुरा नहीं बोलेगा..?


३- तीसरा जो बन्दर है जिसे क़ि हमने कालू कहा है और जिसने अपने हाथ अपने मुंह पर रखे हुए है और गाँधी जी के अनुसार वो बुरा नहीं बोले ...तो भईया इस बात की क्या गारंटी है क़ि वो बन्दर बुरा नहीं सुनेगा और बुरा नहीं देखेगा...?

Saturday, June 5, 2010

मेरा नाम अब मेरे पास था

शाम भी ढलने को थी
मन हो रहा था बोझिल मेरा
तो सोचा क़ि क्यूँ ना जाऊं
समुंदर के तट पर
और वहाँ डूब रहे सूरज को,
निहारूं देर तक,
खेलूँ ताजी हवा के संग
फिर मैं वहाँ गया भी|
पर अरे ये क्या,
यहाँ तो मेरा नाम लिखा है किसी ने
इस रेत के घरौंदे के पास,
जो कि बनाया है किसी ने
अपने पैर के पंजों का सहारा लेकर,
मैं उसे देख ही रहा था कि तभी
अचानक आ गयी वहाँ
समुंदर की एक तेज लहर,
और बहा ले गयी अपने साथ ही
वह मेरा नाम भी उस घरौंदे के साथ ही
फिर बहुत देर तक सोचता रहा कि
किसने लिखा होगा ये नाम मेरा...

तभी एकदम से
तुम्हारे इस तट पर रोज
आने की आदत का ख़याल आया
और मन मे फिर वही
पुरानी यादों का उबाल आया|
फिर तो मैं लगा ढूढ़ने
रेत के हर उस कण को
जो शरीक था
मेरे नाम की लिखावट मे
और कुछ मशक्कत के बाद ही
मैने ढूँढ ही लिए वो सारे कण..

पर तुम्हे होगा अब पूछना
एक सवाल अपनी आदतानुसार ही
की ऐसा मैने किया कैसे..?
ये तो बहुत मुश्किल है
जो खो जाए कण रेत के
ढूँढ ले कोई उन्हे
वापस फिर से..!!

पर मेरे लिए तो ये
बहुत ही आसान निकला
मैने उस जगह की सारी रेत को इकट्ठा किया
फिर हर एक कण की महक को महसूस किया
और फिर जिस जिस कण मे भी
आयी महक-ए-हिना मुझको
मैं उन्हे चुनता गया
ऐसे ही कुछ देर बाद ही
वो मेरा नाम जो तुमने लिखा था
अब मेरे पास था...!!

Friday, June 4, 2010

दोनो ही माँ थीं एकदम असहाय सी

पूरनमासी की रात थी,
चाँदनी बरसात थी,
कुछ देर छत पे बैठा ही था,
कि तभी अचानक,
मोहल्ले के दो घरों मे
सुनी बच्चों के रोने की आवाज़े,
कुछ देर तो रुका पर जब नही माना मन
और तब फिर दोनो ही घरो मे गया मे,
और देखता हू क़ि,
यहाँ एक घर मे
एक बच्चा रो रहा था बेधड़
चाँद को देखकर,
और कह रहा था अपनी माँ से
की माँ मुझे खेलना है,
मुझे खिलौना दो चाँद वाला,
वही दूसरे घर मे,
दूसरा बच्चा भी रो रहा था बेधड़,
चाँद को देखकर,
और कह रहा था अपनी माँ से
की माँ मुझे भूख लगी है
मुझे रोटी दो चाँद जैसी,
और उन दोनो घरो मे,
दोनो ही माँ थीं एकदम असहाय सी
क्यूंकी,
एक माँ चाँद को खिलौना नही कर सकती थी,
और दूसरी माँ चाँद को रोटी नही कर सकती थी...!!

Wednesday, June 2, 2010

दानव दहेज से ग्रसित दो घटनाएँ...!!

पिछले तीन महीने मे मेरे साथ दो घटनाए घटी या यूँ कहूँ की दो मानसिक दुर्घटनाएँ घटी...वे दोनो घटनाए जिन्होने मुझे काफ़ी उद्वेलित किया उनका जिक्र आज मै  आपके सामने  रहा  हू...
पहली घटना लगभग तीन महीने पहले जब मै  एक खिलौनों की दुकान मे था तब हुयी...वहां एक माँ अपनी बिटिया के साथ  दुकान मे आईं.....और अपनी  बिटिया से बोलीं...,"पिंकी बेटा पसंद करो जो खिलौना तुम्हे चाहिए हो....!"
पर उनकी बिटिया ने चौकाने वाला उत्तर दिया और वो ये की,"मम्मी मुझे कुछ
 भी नही चाहिए,..."
"क्यूँ,,अभी कुछ दिन पहले ही तो रेलगाड़ी वाले खिलौने के लिए ज़िद कर रही थी तुम...अब क्या हुआ?"उन माँ   ने कहा.. |
तब पिंकी जिसकी उमर लगभग ७ साल होती उसने कहा,"माँ  अब मुझे खिलौने नही चाहिए.......अब  आप मेरे दहेज के लिए रुपये बचाईए....नही तो मुझे भी पड़ोस वाली वंदना आंटी की तरह ही जला दिया जाएगा.."
इतना सुनते ही दुकान मे मौजूद सभी लोग हँसने लगे....पर क्या ये बात हँसने की थी....?

खैर ये वाक़या मन से कुछ ओझिल हुआ ही था कि अभी कुछ दिनों पूर्व मै जब गाज़ियाबाद में अपने एक मित्र के घर ठहरा हुआ था | वहां  दोपहर मे उनकी बिटिया अपने बड़े भाई के साथ अपने कमरे मे खेल रही थी...की अचानक उनकी बिटिया के बहुत ज़ोर ज़ोर से रोने की आवाज़ आने लगी....घर के सभी लोगों के साथ मै भी वहां  पहुचा...उसकी माँ ने पूछा  कि क्या हुआ परी..?उसने कहा की, भैया ने मेरी गुड़िया को जला दिया है..."
क्यूँ जलायी  तुमने इसकी गुड़िया करन .?"
करन ने कहा की मैने इसकी गुड़िया इसलिए जलायी क्यूंकी इसकी गुड़िया की शादी मेरे गुड्डे से हुई थी और इसने मेरे गुड्डे को खूब सारा दहेज नही दिया था...|"किसी तरह से उस बच्ची को चुप कराया गया...फिर उसके बाद ये बात भी आस पड़ोस में बस हँसने का माध्यम बन कर रह गयी..|  

कितनी सोचनीय और चिंता की बात है कि अब ये दानव दहेज़ बच्चो के कोमल ह्रदय में  भी घर कर रहा है..
वास्तव में हमारे यहाँ भारत में प्राचीन काल से ही इस दहेज़ का उल्लेख मिलता है..चाहे वह सतयुग हो,त्रेता युग हो,या फिर द्वापर युग हो.....किन्तु तब इसका रूप बिलकुल अलग था,|भारतीय संस्कृति में पुत्री के विवाह को कन्या दान कहा गया है...साथ ही हमारे यहाँ दान को सजाकर भेंट करने की भी परम्परा रही है...|इसी लिए माता-पिता विवाह के समय अपनी कन्या को वस्त्राभूषणों से सुसज्जित करते थे और उसके उपयोग की सभी वस्तुए भी साथ में देते थे...|यह था दहेज़ का प्राचीन रूप|
परन्तु आज ये दहेज़ दानव दहेज़ का रूप ग्रहण कर चूका है| पहले कन्या के पिता पर इसके लिए कोई बंधन नहीं था...वही आज ये कन्या के पिता की अनिवार्य विवशता बन चुका है...|
दहेज शब्द संस्कृत के 'दायज:'(दाय+ज:) का ही बिगड़ा हुआ रूप है,जिसमे "दाय" का अर्थ होता है उपहार या दान और "जा" का अर्थ है कन्या(पुत्री)|इस प्रकार दायज  का अर्थ कन्या को दिया गया उपहार या दान है....|मूलतः इसमे स्वेच्छा का भाव निहित था किंतु आज दहेज का अर्थ इससे नितांत भिन्न हो गया है |यह अब वर मूल्य का रूप धारण कर चुका है...|ना जाने कितनी ही नवयुवतियाँ प्रतिदिन इस क्रूर दानव दहेज के हाथो काल के गाल मे समा जाती है...|कितनी दुखद बात है की जो जननी बनती है समाज उन्हें अपने तुच्छ,घ्रणित लालच के लिए जीने का अधिकार भी नहीं दे रहा है...|
आज यह समस्या इतना व्यापक रूप धारण कर चुकी है की इस पर गंभीरता पूर्वक विचार करना और इसका हल खोजना अत्यावश्यक हो गया है,अन्यथा समाज की नैतिक मान्यताये तो नष्ट होंगी ही साथ में मानव मूल्य भी समाप्त हो जायेंगे....|