Saturday, July 24, 2010
बरसात
पानी बरसा धरती में खिल उठीं कोपलें
और मिट गयीं धरती में सब पड़ी दरारें
पेड़ो पर फिर पत्ते झूमे
आँखों में छाई हरियाली
कोयल ने छेड़ी है फिर से
वही पुरानी कूक निराली
मन यही कर रहा है की बस वह सुनते जाएँ
जड़ चेतन सब झूम रहे है
मिल कर गाते मेघ मल्हारें
बिना रुके तुम बरसो बादल
छा जाओ मन मंडल पर
मन में आता है की पंक्षी सा हम खूब नहाये,
खेतों में फसलें लहलायें
कृषकों के चहरे मुसकाएं
झूमे गाँव आज फिर मस्ती में
और ख़ुशी भारत की हर बस्ती में
मन यही मनाता बादर अपना तन मन वारे...!!
Tuesday, July 20, 2010
मै गंगा हूँ
मै गंगा हूँ
वही गंगा जिसे देवलोक से
भूलोक पर
भागीरथ लाये थे थे
कड़ी तपस्या करके
अपने पूर्वजों के पापों का उद्धार करने हेतु,
और मैंने भी
सबको मातृत्व प्रदान किया
धर्म को आयाम दिया
भारत को खुशहाली दी
खेतों को हरियाली दी,
मै दौड़ी भारत में उसकी नस बनकर
पर अफ़सोस ये क़ि
आज भागीरथ की संताने
अपने तुच्छ स्वार्थों में फंसकर
घोल रहीं है ज़हर
मेरी नसों में
मेरे गले को दबा रहे है
कई कई बांध बनाकर
जिससे मै मरी जा रही हू
पल पल घुट घुट कर
पर जरा विचारो तो
जब नहीं होउंगी मै
कहा होगी सम्रद्धि?
कहाँ होंगे तीर्थ?
कहाँ होगा कुम्भ?
कहाँ होगा प्रयाग?
और मुझे कहने दो
क़ि एक भागीरथ लाया मुझे
अपने पूर्वजो के पाप को हरने हित
और अब भागीरथ क़ि संताने
मिटा रही है मुझे
अपनी आने वाली पीढ़ियों को पापमय करने हित
आखिर तब कौन हरेगा उनके पाप..?
Friday, July 16, 2010
नेता जी
चुनाव जीतने के बाद
पहली बार आये हैं नेता जी
अपने क्षेत्र में
पुलिस मौजूद है
पहरेदारी में
और सभी करीबी भक्त
व्यस्त है उनकी आरती ,पूजा करने में
पर विडंबना यह है क़ि देखो तो
अभी चुनाव से ठीक पहले यही नेता
जिस जनता के सामने
हाथ जोड़कर गिडगिडा रहे थे
अपने पक्ष में वोट देने को
आज वही जनता
वोट देने के बाद
नेता जी के बंगले के बाहर हाथ जोड़ कर खडी
तरस रही है नेता जी की एक झलक पाने को...!!
पहली बार आये हैं नेता जी
अपने क्षेत्र में
पुलिस मौजूद है
पहरेदारी में
और सभी करीबी भक्त
व्यस्त है उनकी आरती ,पूजा करने में
पर विडंबना यह है क़ि देखो तो
अभी चुनाव से ठीक पहले यही नेता
जिस जनता के सामने
हाथ जोड़कर गिडगिडा रहे थे
अपने पक्ष में वोट देने को
आज वही जनता
वोट देने के बाद
नेता जी के बंगले के बाहर हाथ जोड़ कर खडी
तरस रही है नेता जी की एक झलक पाने को...!!
Wednesday, July 14, 2010
मगर फिर भी न जाने क्यूँ
तू पागल है उसे ऐसा मै हर बार कहता हूँ
मगर फिर भी न जाने क्यूँ मुझी से प्यार करता है
मुझे देखे इसी हसरत से छत पे रोज आता है
वहां आकर न जाने क्यूँ वो नजरें भी चुराता है
वो ज़माने याद है मुझको वो नखरे याद आते है
वो दुपट्टे से तेरा चेहरा छिपाना और हंस देना
तेरा गिरना फिसलकर और मुझको हाथ दे देना
बिना बोले तेरा आँखों से अपनी बात कह देना
वो बारिश का महीना और किश्ती वो कागज की
तेरा उसके लिए लड़ना और घर पे आके कह देना
वो ज़माने याद है मुझको वो नखरे याद आते है
तू पागल है उसे ऐसा मै हर बार कहता हूँ
मगर फिर भी न जाने क्यूँ मुझी से प्यार करता है...!!
मगर फिर भी न जाने क्यूँ मुझी से प्यार करता है
मुझे देखे इसी हसरत से छत पे रोज आता है
वहां आकर न जाने क्यूँ वो नजरें भी चुराता है
वो ज़माने याद है मुझको वो नखरे याद आते है
वो दुपट्टे से तेरा चेहरा छिपाना और हंस देना
तेरा गिरना फिसलकर और मुझको हाथ दे देना
बिना बोले तेरा आँखों से अपनी बात कह देना
वो बारिश का महीना और किश्ती वो कागज की
तेरा उसके लिए लड़ना और घर पे आके कह देना
वो ज़माने याद है मुझको वो नखरे याद आते है
तू पागल है उसे ऐसा मै हर बार कहता हूँ
मगर फिर भी न जाने क्यूँ मुझी से प्यार करता है...!!
Sunday, July 11, 2010
दिन ढले जा रहे है
दिन ढले जा रहे है,
बिना कुछ बोले
एकदम चुपचाप
अपने समय पर नियत,
दिनों के तो पैर भी नहीं होते,
सो वो बढे जा रहे है
बिना अपने निशान छोड़े
दिनों के तो पर भी नहीं होते,
इसीलिए वो उड़े जा रहे है
बिना टूटे हुए पंख छोड़े,
दिनों को कोई लेना देना नहीं है
इन दुनियावी झंझlवातों से
चाहे हम उठे दस बजे या
सोने जाये दस बजे,
चाहे हम अपना काम करे या
यूँ ही व्यर्थ बातो में
अपना दिन गुज़ार दें,
वो तो रहे है हमेशा से ही
चाक चौबंद समय के पाबंद
वो तो हमेशा से पीढ़ी दर पीढ़ी
गुजरते रहे थे,गुजरते रहे है,गुजरते रहेंगे
बिना कुछ बोले
एकदम चुपचाप
अपने समय पर नियत,
दिनों के तो पैर भी नहीं होते,
सो वो बढे जा रहे है
बिना अपने निशान छोड़े
दिनों के तो पर भी नहीं होते,
इसीलिए वो उड़े जा रहे है
बिना टूटे हुए पंख छोड़े,
दिनों को कोई लेना देना नहीं है
इन दुनियावी झंझlवातों से
चाहे हम उठे दस बजे या
सोने जाये दस बजे,
चाहे हम अपना काम करे या
यूँ ही व्यर्थ बातो में
अपना दिन गुज़ार दें,
वो तो रहे है हमेशा से ही
चाक चौबंद समय के पाबंद
वो तो हमेशा से पीढ़ी दर पीढ़ी
गुजरते रहे थे,गुजरते रहे है,गुजरते रहेंगे
और ये हम ही है जो उन्हें ऐसे ही
गुजरते हुए
देख रहे थे देख रहे है
पर क्या देखते रहेंगे यूँ ही...???
गुजरते हुए
देख रहे थे देख रहे है
पर क्या देखते रहेंगे यूँ ही...???
Thursday, July 8, 2010
कुछ हाइकु कवितायेँ भाग-२
(१)- दरीचे खुले
हवा के साथ आयी
तेरी खुशुबू |
तेरी खुशुबू |
(२)- कह भी तो दो
कहना है जो,वर्ना
रोना है क्या?
कहना है जो,वर्ना
रोना है क्या?
(३)- उडी चिड़िया
पंखों को फैलाकर
दाना लेकर |
पंखों को फैलाकर
दाना लेकर |
(४)- उसने कहा
हम साथ चलेंगे
बन के साया |
हम साथ चलेंगे
बन के साया |
(५)- पत्थर आया
टूटा आइना जैसे
मेरा विश्वाश |
टूटा आइना जैसे
मेरा विश्वाश |
Monday, July 5, 2010
प्राचीन भारत मे धातु विज्ञानं की उन्नत परंपरा
आपको बताना चाहूँगा क़ि आज जो दुनिया के वैज्ञानिक बेस्ट क्वालिटी क़ि जो स्टील बना रहे है उसमे भी ये गुण नहीं है क़ि वह जंग रहित हो| परन्तु भारत में दशवीं शताब्दी में जन्गरहित स्टील बनता था और काफी बड़े स्तर पर स्टील का निर्माण होता था| जहा १० वीं शताब्दी के निर्माण है वहा पर अगर तब के लोहे का इस्तेमाल हुआ है उस लोहे में एक इंच भी जंग नहीं लगा है भारत में अब भी ऐसे कई घंटे ,दिल्ली के मेहरावली में स्थित मीनार इसकी जीती जागती मिसाले है |अंग्रेजों के दस्तावेज बताते है क़ि एक अंग्रेजी धातुविज्ञानी विलियम स्कॉट भारत में अभ्यास के लिए आया था| उस विलियम स्कॉट के अनुसार भारत में कम से कम २०००० से अधिक फैक्ट्रियां है भारत में स्टील बनाने की| वो कहता है की भारत में जो लोग इस कम में लगे हुए है वो शुशिक्षित लोग है भले ही उनके पास डिग्रियां नहीं है |उन लोगो को पता है की कितने तापमान पर जाकर लोहा पिघलता है और बेहतर स्टील बनाने के लिए उसमे क्या क्या मिश्रण करना पड़ेगा | आपको मालूम होगा की स्टील बनाना एक हाईटेक कार्य है जीरो टेक्नोलोजी का कार्य नहीं है | स्टील बनाने के लिए सबसे पहले तो चाहिए ब्लास्ट फर्नेस और वो भी ऐसी फर्नेस जिसमे की १४०० डिग्री C का तापमान उत्पन्न हो सके |अब १४०० डिग्री C तापमान पैदा करने वाली भट्टियाँ (फर्नेस ) स्कॉट के हिसाब से इस देश में २०००० से अधिक है यानी भारत के प्रत्येक गाँव में उपलब्ध है जहा पर कच्चा लोहा मिलता है | उसके अनुसार जो २०००० से ज्यादा प्रोडक्सन यूनिट है उनका उत्पादन पूरी दुनिया में भेजा जा रहा है बिकने के लिए | स्कॉट के अनुसार ही ईस्ट इंडिया कंपनी अपने जहाजो के निर्माण के लिए भारत के स्टील का उपयोग करती है और ऐसा जहाज लगभग ८५-९० साल तक चलता है | स्कॉट के अनुसार दुनिया के किसी अन्य देश के पास इतनी उन्नत तकनीकि नहीं है स्टील बनाने की| जब वो इंग्लॅण्ड में जाकर वहा की संसद में कहता है की हम लोगो को भारत में जाकर स्टील बनाना सीखना चाहिए तो सरकार वहा से कई छात्रों को भारत में प्रशिक्षण लेने के लिए भेजती है जो की भारत में अगरिया जाती के लोगो से प्रशिक्षण लेते है स्टील बनाने का |
अगरिया एक वनवासी जनजाति है भारत में सबसे ज्यादा झारखण्ड में फिर छात्तिसघढ़ में है |जो लोग छत्तीसगढ़ या आसपास के रहने वाले है वो जानते होंगे की छात्तिसघढ़ के सरगुजा जिले में सबसे ज्यादा अगरिया जाती के लोग रहते है | वो आज भी अपनी परंपरा के अनुसार दादा,नाना ,की पीढ़ी से स्टील बनाने का काम कर रहे है बस कमी है तो इतनी की उनके पास मेटेलेरजी(धातु विज्ञानं ) की डिग्री नहीं है | लेकिन ज्ञान इतना है की छोटी सी फर्नेस में १४०० डिग्री का तापमान पैदा कर ले जबकि इतने ही तापमान को पैदा करने में बड़ी बड़ी कंपनियों को करोडो रुपये खर्च करने पड़ते है |
अगरिया एक वनवासी जनजाति है भारत में सबसे ज्यादा झारखण्ड में फिर छात्तिसघढ़ में है |जो लोग छत्तीसगढ़ या आसपास के रहने वाले है वो जानते होंगे की छात्तिसघढ़ के सरगुजा जिले में सबसे ज्यादा अगरिया जाती के लोग रहते है | वो आज भी अपनी परंपरा के अनुसार दादा,नाना ,की पीढ़ी से स्टील बनाने का काम कर रहे है बस कमी है तो इतनी की उनके पास मेटेलेरजी(धातु विज्ञानं ) की डिग्री नहीं है | लेकिन ज्ञान इतना है की छोटी सी फर्नेस में १४०० डिग्री का तापमान पैदा कर ले जबकि इतने ही तापमान को पैदा करने में बड़ी बड़ी कंपनियों को करोडो रुपये खर्च करने पड़ते है |
Saturday, July 3, 2010
तुम्हारी याद के बादल
अरे देखो तो
इन पर्वतों के कन्धों पर
लदे है ये
शरारती बच्चों क़ि तरह
शरारत करते हुए
खेलते उमड़ते घुमड़ते बादल|
ठीक वैसे ही
जैसे क़ि मेरे दिमाग पर
मेरी याददाश्त पर लदे हों
बरस जाने को
एक दम आतुर
तुम्हारी याद के बादल...!!
इन पर्वतों के कन्धों पर
लदे है ये
शरारती बच्चों क़ि तरह
शरारत करते हुए
खेलते उमड़ते घुमड़ते बादल|
ठीक वैसे ही
जैसे क़ि मेरे दिमाग पर
मेरी याददाश्त पर लदे हों
बरस जाने को
एक दम आतुर
तुम्हारी याद के बादल...!!
Thursday, July 1, 2010
एक और एक बराबर दो रोटियां
वहां एक क्लास में
एक अध्यापक महोदय
पूछ रहे थे प्रश्न
पढाये हुए पाठ में से
अपने क्लास में उपस्थित छात्रों से
इसी क्रम में
उन अध्यापक महोदय ने
सामने बैठे एक छात्र से पूछा क़ि
बताओ बेटा एक और एक
होते है कितने..?
तब वह सामने बैठा छात्र
जो क़ि कई दिन से भूखा था
उसने तपाक से उत्तर दिया
क़ि
गुरु जी
एक और एक बराबर दो रोटियां....!!
एक अध्यापक महोदय
पूछ रहे थे प्रश्न
पढाये हुए पाठ में से
अपने क्लास में उपस्थित छात्रों से
इसी क्रम में
उन अध्यापक महोदय ने
सामने बैठे एक छात्र से पूछा क़ि
बताओ बेटा एक और एक
होते है कितने..?
तब वह सामने बैठा छात्र
जो क़ि कई दिन से भूखा था
उसने तपाक से उत्तर दिया
क़ि
गुरु जी
एक और एक बराबर दो रोटियां....!!
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