Saturday, July 24, 2010
बरसात
पानी बरसा धरती में खिल उठीं कोपलें
और मिट गयीं धरती में सब पड़ी दरारें
पेड़ो पर फिर पत्ते झूमे
आँखों में छाई हरियाली
कोयल ने छेड़ी है फिर से
वही पुरानी कूक निराली
मन यही कर रहा है की बस वह सुनते जाएँ
जड़ चेतन सब झूम रहे है
मिल कर गाते मेघ मल्हारें
बिना रुके तुम बरसो बादल
छा जाओ मन मंडल पर
मन में आता है की पंक्षी सा हम खूब नहाये,
खेतों में फसलें लहलायें
कृषकों के चहरे मुसकाएं
झूमे गाँव आज फिर मस्ती में
और ख़ुशी भारत की हर बस्ती में
मन यही मनाता बादर अपना तन मन वारे...!!
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बारिश के बाद धरती पर होने वाले के परिवर्तन को बखूबी लिखा है...अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteएक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
ReplyDeleteआपकी चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं!
बेहतरीन रचना.
ReplyDeleteसुंदर नवगीत है. अच्छा लगा.
ReplyDeleteबहुत खूब...बरसात का सजीव चित्रण
ReplyDeleteकृपया नीचे लिखे लिंक पर मेरी टिप्पणी पढने का कष्ट करें :-
ReplyDeletehttp://www.janokti.com/2010/07/28/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%89%E0%A4%97%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8/comment-page-1/#comment-2286
समय से वार्तालाप करती इस रचना के लिए बधाई.
ReplyDeletebarsat ka sunder chitran........
ReplyDeleteसंगीता जी,शिवम जी,समीर जी भाईसाहब,काजल कुमार जी भाईसाहब ,विजय प्रकाश जी भाईसाहब,संध्या गुप्ता जी,सुमन जी आप सभी का बहुत बहुत आभार कृपया अपना स्नेह यूँही बनाए रहे ...!!
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