आज एक बड़े नेता के आने की,
तैयारी मे जुटा है,
शहर का सारा प्रशासन,
कई जिलों की फोर्स,
की गयी है तैनात,
सुरक्षा के सारे इंतज़ाम भी है,
एकदम चाक-चौबंद,
वहाँ कार्यक्रम स्थल पर,
लगाया गया है एक,
मेटल डिटेक्टर भी,
पर मुझे यकीन है कि,
यह मेटल डिटेक्टर भी,
नही पहचान पाएगा उन हथियारो को,
जो बमों के रूप मे,
आदमी के दिमाग़ मे रखे है,
उस ए-के-४७ को भी,
जो उसकी क़लम मे रखी है,
या वो ये उस आर.डी.एक्स को भी,
ना पहचान पाए
जो की छिपा है आम आदमी की,
वेदना मे,
इतनी सुरक्षा व्यवस्था के वावजूद भी,
क्या रोका जा सकता है विस्फोट,
दबी हुई वेदनाओं का,
सताई हुई भावनाओं का,
और अगर वो आने वाला,
इतने विस्फोट से भी ना मरे,
तो पूंछना एक सवाल,
खुद से कि क्या,
वास्तव मे वो जिंदा है भी,या नही..?
कि जिसे मार सकते है,
असली हथियार,
तो फिर बताओ,
ये ग़रीबों का पेट काटकर,
इतनी सुरक्षा व्यवस्था क्यूँ..?
ये बड़ा ज्वलंत प्रश्न उठाया है आपने रचना के माध्यम से. दर असल ये खुद की हरकतें पहचानते हैं और इसी लिए भयभीत रहते हैं और सुरक्षा व्यवस्था की जरुरत रहती है इन्हें.
ReplyDeleteबढ़िया रचना!
मेरे नए ब्लोग पर मेरी नई कविता शरीर के उभार पर तेरी आंख http://pulkitpalak.blogspot.com/2010/05/blog-post_30.html और पोस्ट पर दीजिए सर, अपनी प्रतिक्रिया।
ReplyDeletebahut sahi aur sachchi baat kahi...lage rahiye...badlaav aayega zarur aayega...aur ham laayenge...
ReplyDeleteसही कहा
ReplyDeleteजारी रहे सफ़र
बहुत अच्छे से लिखा है.....सटीक ...
ReplyDeleteसमीर जी भाईसाहब,दिलीप भाई जी,गिरीश भाईसाहब,संगीता जी आप सभी का खूब खूब आभार..
ReplyDeleteबहुत अच्छे से लिखा है.....सटीक
ReplyDeletebahut sunder.........Indli ki jankari ke liye dhnyavad.
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