Friday, November 26, 2010

२६/११ के बाद दो साल और अब भी वही के वही...!!

२६/११ की आज दूसरी सालगिरह है..बेशक यह अविस्मरणीय दुख का दिन है जिसे कि आम मुम्बईकर और सम्पूर्ण भारतवासी कभी भुला नही सकते !
पर इसके साथ साथ यह और अन्य बातो को भी याद करने का दिन है....
यह अन्य बाते मसलन मुम्बई हमले के बाद देश सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के वायदे, जो कि अभी तक सिर्फ़ कुछ बख्तरबन्द गाडियो और जवानो के द्वारा फ़्लैग मार्च को छोडकर पूरे नहीं हो पाये है !

अन्य बातो मे ये भी कि उस समय जब देश अपने परिजनों की सकुशल घर लौटने और देश के जवान आतंकियों से लगातार अपनी जान की परवाह न करते हुए आतंकियों से लोहा लेने में व्यस्त थे तभी महाराष्ट्र के गृहमंत्री ने बदतमीजी की सारी हदे पार करते हुये कहा था कि "बडे बडे शहरो मे ऐसी छोटी छोटी घट्नाये होती रहती है।"

खैर उस समय कांग्रेस आलाकमान ने जनता के तत्कालीन गुस्से को देखते हुये मुख्य्मन्त्री विलासराव देशमुख के साथ साथ महाराष्ट्र के गृहमंत्री पाटिल को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया था !
लेकिन नतीजा क्या रहा ...जो महाराष्ट्र की जनता मुम्बई हमलो के लिये अक्रोशित थी और विरोध मे जिसने सारे देश मे जगह जगह पर सैकडो किमी लम्बी मानव कतारें बनायी जो कि हाथ मे मोमबत्ती लेकर प्रदर्शन कर रही थी ...वही जनता अपना सारा दुख भुलाकर आगे हुये चुनावो मे वोट डालने के लिये कतारो मे न लग सकी...।

परिनाम क्या हुआ...फ़िर वही कांग्रेस की सरकार केन्द्र व राज्य मे आयी और फ़िर से पाटिल को राज्य सरकार मे गृहमंत्री बनाया गया और विलासराव देशमुख को केन्द्र मे मलायीदार ओहदा दिया गया। क्या ये उन शहीदों की शहादत पे तुषारापात नहीं था |

अन्य बातों में ये भी की उस हमले में पकडे गए एकमात्र आतंकी कसब को सुप्रीम कोर्ट के द्वारा फांसी दिए जाने के वावजूद नागरिको के पैसे से उसकी खिदमत की जा रही है और उसकी सुरक्षा उन जवानो को करनी पड़ रही है जिन्होंने मुंबई हमलों में शहीद अपने भाइयों की अर्थियों को कंधा दिया था और जिसके पीछे कसब और उसके साथी जिम्मेदार थे |

सुरक्षा व्यवस्था की बात की जाये तो आज भी देश भर मे अप्रशिक्षित पुलिस के जवान अपनी अंग्रेजों के जमाने की रायफ़ल लेकर विधिवत आर्मी के द्वारा प्रशिक्षित आतन्कवादियो से निपटने को मुश्तैद है !

हमारी आतंक रोधक तन्त्र आज भी कमजोर है जबकि इसके समकक्ष पाकिस्तान की भारत को बर्बाद करने की इच्छा लगातार बलवती हुयी है ।
अगर अमेरिका जैसे विकसित देशो से तुलना की जाये तो वहा प्रत्येक एक लाख आबादी पर ५०० पुलिस कर्मी होते है; वही भरत मे ये संख्या १२६ है और उनमे भी अधिकतर पुलिस कर्मी माननीयो की सुरक्षा मे ही निमग्न रहते है।

रही बात खूफ़िया विभाग की तो रॉ के पूर्व प्रमुख गिरीश चन्द्र सक्सेना ने सन २००१ मे ही दी गयी पपनी रिपोर्ट मे सिफ़ारिश की थी कि आई०बी० मे फ़ील्ड ड्यूटी मे कम से कम ३०००० नये कर्मचारियो को तैनात किया जाना चाहिये । लेकिन आई०बी० मे कर्मचारियो की कुल संख्या लगभग २५००० है जिसमे से एक तिहायी ड्राईवर, चपरासी, और प्रशाशकीय और सचिवालय स्तर के कर्मचारी है । फ़ील्ड ड्यूटी मे कर्मचारियो की संख्या लगभग ३५०० है जिसे कि पूर्व रॉ प्रमुख सक्सेना के अनुसार ३०००० होना चहिये ! और इन फ़ील्ड ड्यूटी मे तैनात ३५०० मे से भी आधे से अधिक राजनैतिक गुप्तचरी मे तैनात है ।
ऐसे मे ये सोचने वली बात है कि १.२ अरब की जनसंख्या वाले इस देश मे ये संख्या आटे मे नमक के बराबर न होकर उससे भी कम ही है ।

एक तरफ जहा देश के अंदरूनी सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने की आवश्यकता है तो वही अगर देश के रहनुमाओं ने अपनी अच्छाशक्ति को मजबूत नहीं किया तो कोई फायदा नहीं होने वाला ! दो साल आज हो गए है और मैंने एक बार भी प्रधानमंत्री या गृहमंत्री की इस मामले कोई सख्त आवाज/चेतावनी नहीं सुनी जो उन्होंने पाकिस्तान से आतंकियों को सौपने के लिए या आतंकी गतिविधियाँ रोकने के लिए कही हो |

देखिये एक बात तो निश्चित है की जब तक गृहमंत्री जैसे जिम्मेदार पद पर बैठे लोग आतंक का रंग नहीं पहचान पाएंगे, उन्हें कश्मीर के आतंकी 'गुमराह भाई' नज़र आएंगे, बंलादेश के घुसपैठियों को उनके द्वारा संसद में 'नौकरी की तलाश में ए भाई' कहेंगे , अफजल गुरु और कसाब में वोटों की पोटली नजर आती रहेगी तब तक कितने ही सुधार क्यों न हो जाये सब सब के सब व्यर्थ ही साबित होंगे |

खैर आइये हम सब उन महान शहीदों को नमन करें की जिन्होंने देश के सम्मान और सुरक्षा के लिए अपनी जान तक न्योछावर कर दी ! उनका ऋण भारत वासी कभी भी नहीं भुला पाएंगे |




Tuesday, October 26, 2010

बौद्धिक-वैश्यावृत्ति और कश्मीर समस्या

इन दिनों हमारे देश में राजनीतिक अतिअसंवेदनशीलता के कारन कश्मीर पिछले कुछ माह से फिर से पूरी दुनिया के समाचार पत्रों की सुर्खियाँ बना हुआ है | हद तो तब हो गयी कि जिन्हें देशद्रोह की सजा में सलाखों के पीछे होना चाहिए ऐसे कुछ अलगाववादी तत्वों ने दिल्ली में "आज़ादी -एक ही रास्ता " के नाम से  एक सभा का आयोजन किया | सभा में जो नारे लगाये जा रहे थे वो कोई कश्मीर से आये हुए  किसी एक मजहब के युवा नहीं थे बल्कि भारत में अल्पसंख्यकों को मिलने वाली हर सुविधा का उपभोग करने वाले स्थानीय युवा ही थे और और इस सभा में जो तथाकथित विद्वान मंच साझा कर रहे थे उसमे गिलानी के साथ एक ऐसी महिला थी जो भारत विरोधी किसी भी घटना का पक्ष लेने और अपनी राय व्यक्त करने से नहीं चूकती | जब उन्होंने अपनी बीती हुयी जिंदगी के ऐसे पहलुओं पर की जिन्हें सभ्य समाज अश्लील कहता है, एक किताब लिखी तो उन्हें बुकर पुरस्कार से नवाजा गया और उसके बाद तो मीडिया में वो इस तरह छाई की भारत में सिर्फ ढंग की विद्वान यही है | ये है राष्ट्रविरोधी ताकतों के ह्रदय में निवास करने वाली  अरुंधती राय | इससे पहले अभी पिछले दिनों जब नक्सलियों के सफाए के लिए जो आपरेशन ग्रीन हंट चलाया गया तो इन्होने पुरजोर विरोध किया और इससे भी पहले जब मुंबई हमला हुआ, तब इनका एक लेख एक प्रख्यात राष्ट्रीय पत्रिका में प्रकाशित हुआ जिनमे इन्होने आतंकियों को आतंकवादी न कहकर 'युवाओं के एक छोटे दल " कहकर संबोधित किया और इनके अनुसार  जिसने भारतीय सेना को ६० घंटे तक असहाय बनाये रखा | इन्हें एक टी०वी० चैनल द्वारा चलाये जा रहे फ्लैश की "पाकिस्तान बुरा है -भारत अच्छा है " ,बेवकूफाना और वाहियात लगे | उस लेख में इन्होने और भी कई आपत्तिजनक बातों का उल्लेख इस मंशा से किया कि तुरंत हुए इन हमलों की गंभीरता कम हो सके | इसके लेख को पढ़कर  मैंने भी उसी पत्रिका के अगले अंक में "अरुंधती का दुस्साहस"  नाम  से लिखा जिसमे उनके द्वारा लिखी गयी कई बातों का खंडन किया |
                                         वास्तव में सिर्फ अरुंधती राय ही नहीं बल्कि वर्तमान में उनके जैसे कई स्वयंभू विद्वान इस समय सक्रिय है जो विदेशी अखबारों ,पत्रिकाओं के लिए सिर्फ कुछ डालरों की खातिर ,और विदेशों में बैठे भारत विरोधी ताकतों से अच्छी-खासी रकम के बदले इस तरह की बाते लिखते, बोलते रहते है | इस गिरोह में आपको मीडिया के व्यक्ति भी मिल जायेंगे , कुछ  ऐसे लोग भी मिलेंगे जो गेरुआ वस्त्र धारण करते है औए अपने नाम से पहले स्वामी लिखते है ,कुछ साहित्यकार भी मिलंगे , कुछ उच्च पदों पर बैठे अधिकारी भी इसमें शामिल है तो वही अधिकतर राजनेता लगभग सभी दलों के इस गिरोह  में शामिल है |
हमारे समाज में एक ऐसी वृति है जिसे सभ्य लोग वैश्यावृति कहते है ....ठीक उसी प्रकार क्या फिर सिर्फ चाँद डालरों के लिए उस भूमि जिसे हमने भारत माँ  कहा है ,की एकता और अखंडता,भारत की मर्यादाओं, संस्कृति को तार तार करते हुए विदेश में बैठे अपने आकाओं के इशारो पर साहित्य सृजन करना, लेख लिखना, हमारे जवानों द्वारा मारे गए आतंकियों ,और पुलिस द्वारा मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों के लिए आंसू बहानाक्या ये "बौद्धिक-वैश्यावृत्ति"  नहीं है ?? इस समय भारत में यह "बौद्धिक-वैश्यावृत्ति" अपनी चरम सीमा पर है ,जिसके सामने दुनिया का सबसे बड़ा कहा जाने वाला लोकतंत्र असमर्थ नज़र आ रहा है और देशद्रोही ताकतें इसका भरपूर आनंद ले रहीं है !


                        अभी कुछ माह पूर्व एक बड़े न्यूज चैनेल के संपादक ने फेसबुक पर अपनी मूढ़ता का परिचय देते हुए ये लिखा कि "क्यों न हमें भारत और पाकिस्तान दोनों मुल्कों की शांति और सम्पन्नता की खातिर कश्मीर को पाकिस्तान को दे देना चाहिए ?क्या मै सही हू ?" मैंने उनसे कहा कि जनाब आप भारत में रहते हो भारत की खाते हो पर पाकिस्तान कि इस बात में बात क्यों मिलाते हो कि "कश्मीर के बिना पाकिस्तान अधूरा है |" चलो कुछ देर के लिए मान भी लिया कि पाकिस्तान को कश्मीर दे दिया जाये तो क्या ये समस्या हल हो जायेगी ..फिर .चीन भी लगातार कह रहा है कि  अरुणाचल हमारा है हमें चाहिए ...वो भी दे देंगे...फिर देखा देखी में एक छोटा सा देश जो कभी हमारा बहुत करीबी हुआ करता था, नेपाल .. उसने भी भारत में खटीमा तक अपनी भूमि होने का दावा किया है ..क्या उसे भी शांति और सम्पन्नता के नाम पर दे देना चाहिए ....?? और फिर क्या गारंटी इस बात की कि एक बार उन्हें भूमि देने पर वो दुबारा और भूमि हथियाने का प्रयास नहीं करेंगे ?और ये देने कि बीमारी भी न ..बहुत ख़राब बीमारी है साहब ...! एक बार किसी को लग जाये फिर छुडाये नहीं छूटती है अगर पाकिस्तान कह सकता है कि कश्मीर के बिना पाकिस्तान अधूरा है तो आप और हम  ये क्यूँ नहीं कहते कि "पाकिस्तान ,बंगलादेश, तिब्बत आदि के बिना भारत अधूरा है" ये सब भारत में  पुनः मिले और शांति के साथ रहे तो क्या सम्पन्नता नहीं आयेगी ? इससे तो हमारी मातृभूमि भारत पुनः अखंड होकर अपने दिव्य स्वरुप में शोभायमान होकर पूरे विश्व के पटल पर पुनः स्थापित हो सकेगी ..इससे बेहतर और क्या होगा ?
                                       ये भारत का दुर्भाग्य है कि इसपर  कुछ एक को छोड़ दे तो अधिकतर निम्न आत्मविश्वास से लबरेज और हीन भावना व्  तुष्टिकरण से ग्रसित राजनेताओं ने ही शासन किया है, जिनके लिए भारत की भूमि सिर्फ एक मिटटी टुकड़ा ही मात्र है और यह कहते हुए अपनी जमीन विदेशियों के पास चले जाने देते है कि अरे वहां तो घास का तिनका भी नहीं उगता , जिनकी द्रष्टि में राष्ट्र-सर्वोपरि न होकर बल्कि सत्ता-सर्वोपरि रही है | मैंने कही पढ़ा है कि जब गिलगित और बलुचिश्तान ने भारत में मिलने को  इस बात पर स्वीकार किया कि भारत को हमें आर्थिक पैकेज देना होगा ..| इस पर हमारे सत्ता में बैठे हुए नेता कई महीनो तक विचार करते रहे और अंततोगत्वा चीन ने गिलगित और बलुचिश्तान को आर्थिक पैकेज दे दिया और पाकिस्तान ने गिलगित और बलूचिस्तान को अपना राज्य घोषित कर दिया और हम सिर्फ देखते ही रह गए | ऐसे में उन शासकों  से यह उम्मीद करना कि भारत में फ़ैल रही इस अछूत वृत्ति  को रोक सकेंगे ..शायद एक कोरी कल्पना ही होगी |


                    संसार में स्वतंत्र, संपन्न और गौरवशाली राष्ट्र कि सत्ता का जीवनप्राण तो मातृभूमि कि ऐसी भक्ति है जो तीव्र, क्रियाशील, दृढनिष्ठ तथा ज्वलंत हो | हम भारतियों को तो मातृभूमि कि अति दिव्य भक्ति उत्तराधिकार में मिली हुयी है | भक्ति के वे अंगारे जो प्रत्येक भारतीय के ह्रदय में सुप्त पड़े हुए है, उन्हें प्रज्वलित किया जाना चाहिए ताकि वे मिलकर और पवित्र ज्वालाओं में परिणत होकर हमारी मातृभूमि पर भूतकाल में हुए समस्त अतिक्रमणों को भस्म करें और भारत माता के अतीत की अखंडित प्रतिमा की पुनः स्थापना कर भारत माँ को चिरमयी जगद्जननी जगदम्बा का रूप प्रदान करने का स्वप्न साकार करें |

                         

Sunday, August 15, 2010

क्या हम आजाद है ..??

 कल शाम में  दूरदर्शन पर महामहिम राष्ट्रपति जी का देश के नाम सन्देश सुना ...अगर उसमे की एक दो बातो को छोड़ दिया जाये तो उनका पूरा का पूरा भाषण उसी प्रकार हवाई भाषण था जैसे की उनकी कुछ महीने पहले हुयी सुखोई विमान यात्रा ...काश उन्होंने भारत के किसी ग्रामीण अंचल में बैलगाड़ी पे यात्रा की होती तो उनकी बाते भी जमीन से जुडी होती...!!

बची खुची कसर हमारे प्रधानमंत्री जी ने आज सवेरे लाल किले की प्राचीर पर से देश को संबोधित करके पूरी कर दी ...देश को किस प्रकार से अपनी बातो में बहलाया जा सकता है ये इन दोनों अभिभाषनो से देखा जा सकता है ...

हमारा भारत १५ अगस्त १९४७ को असंख्य बलिदानों के कारन आजाद हुआ परन्तु उसके
तुरंत बाद ही अंग्रेजो की मानसिक औलादों ने भारत को पुनः गुलाम बना लिया
और अबकी से ये गुलामी पहले की गुलामी से बहुत अधिक खतरनाक है और अब तक ये
गुलामी पूरे ६३ साल की हो गयी है और लगातार जारी है..!

पर अब विडम्बना और भारत माँ की लाचारी ये है कि उस समय जब अंग्रेजो ने गुलाम बनाया था तब आजादी के लिए संघर्ष करने वाले बहुत से महामानव हुए और भारत को आजाद करवाया भी पर अब आज कोई माँ भारती को आजाद करने के लिए आगे नहीं आ रहा है ..!

शायद सभी लोग ने अपने तथाकथित चाचा की वो बात जो की उन्होंने आजादी मिलने के बाद युवाओ से कही थी कि अब आप लोग अपने अपने कामो में मसलन अपनी पढाई ,काम धंधे में लौट जाइये और देश की चिंता हम पर छोड़ दीजिये ...और ऐसा हुआ भी ...लोगो ने सारा भार उनपर छोड़ दिया और खुद निश्चिन्त होकर अपने अपने कामो में व्यस्त हो गए ...और आज तक उन कुटिल चाचा के परिवार ने भारत को गुलाम बनाया हुआ है ..!!

भगवान बुद्ध ने कहा था कि परंपरा या अनुभव के नाम पर किसी कि बात पर भरोसा न करो | सोचो कि तुम्हारे हित में क्या है और कौन सा रास्ता सबके लिए कल्याणकारी है | वाही रास्ता चुनो |फैसला उसी सोच से निकलेगा |

उन्ही के समकालीन एक चीनी विद्वान सु...न सु ने अपनी पुस्तक युद्धकला में कहा था कि अंततः जीत उसकी होती है जिसके पास ससूचनाये होती है ,जो सोचता है |

लगभग ढाई हजार साल पहले बुद्ध और सुन सु ने सोचने कि क्षमता पर जोर दिया था ,सोचने कि आजादी कि हिमायत कि थी |

आजाद भारत में सबसे बड़ा और पहला झटका इसी सोच को लगा | उसने सवाल पूंछना बंद कर दिया | अर्थशाष्त्री अमर्त्य सेन जिसे "बहसबाज भारतीय " कहते है वह संख्या में निरंतर कम होता गया और लगातार कम होता जा रहा है ...!
लोगो ने यह मानना शुरू कर दिया है कि जो काम हमारी सरकारे कर रही है वो सही है या गलत है या फिर उसका हमारे से सीधा समंध नहीं है तो फिर मै उसकाप्रतिकार क्यों करू....भले ही वह काम देश और समाज को काफी हानि पंहुचाने वाला ही क्यों न हो ...लोगो को ये सोच तो विकसित करनी ही होगी कि हमें सिर्फ अपने लिए ही नहीं अपितु अपनो के लिए भी जीना होगा..!!

Wednesday, August 11, 2010

वो आज फिर से


वो आज फिर से  

पनघट पर उदास बैठी है, 

तेरा इंतज़ार करके,

कि तू आज फिर से नही आया  

खाली किश्तियों ने 

  गवाही दी उसको..!!

Monday, August 2, 2010

एक नया जहाँ


यहाँ नफ़रत है,धोखा है,झूठ है
ख़ौफ़ और आतंक के साये भी है दूर तलक
चलो चलें ,

एक नया जहाँ ढूंढते है हम तुम
दोनो मिलकर...!!

Saturday, July 24, 2010

बरसात











पानी बरसा धरती में खिल उठीं कोपलें
और मिट गयीं धरती में सब पड़ी दरारें
        पेड़ो पर फिर पत्ते झूमे
       आँखों में छाई हरियाली
       कोयल ने छेड़ी है फिर से
       वही पुरानी कूक निराली
मन यही कर रहा है की बस वह सुनते जाएँ
        जड़ चेतन  सब झूम रहे है
        मिल कर गाते मेघ मल्हारें
        बिना रुके तुम बरसो बादल
        छा जाओ मन मंडल पर
मन में आता है की पंक्षी सा हम खूब नहाये,
        खेतों  में फसलें लहलायें
        कृषकों के चहरे मुसकाएं
        झूमे गाँव आज फिर मस्ती में
       और ख़ुशी भारत की हर बस्ती में
मन यही मनाता बादर अपना तन मन वारे...!!

Tuesday, July 20, 2010

मै गंगा हूँ












मै गंगा हूँ
वही गंगा जिसे देवलोक से
भूलोक पर
भागीरथ लाये थे थे
कड़ी तपस्या करके
अपने पूर्वजों के पापों का उद्धार  करने हेतु,
और मैंने भी
सबको मातृत्व प्रदान किया
धर्म को आयाम दिया
भारत को खुशहाली दी
खेतों को हरियाली दी,
मै दौड़ी भारत में उसकी नस बनकर
पर अफ़सोस ये क़ि
आज भागीरथ की संताने
अपने तुच्छ स्वार्थों में फंसकर
घोल रहीं  है ज़हर
मेरी नसों में
मेरे गले  को दबा रहे है
कई कई बांध बनाकर
जिससे मै मरी जा रही हू
पल पल घुट घुट कर
पर जरा विचारो तो
जब नहीं होउंगी मै
कहा होगी सम्रद्धि?
कहाँ  होंगे तीर्थ?
कहाँ  होगा कुम्भ?
कहाँ होगा प्रयाग?
और मुझे कहने दो
क़ि एक भागीरथ लाया मुझे
अपने पूर्वजो के पाप को हरने हित
और अब भागीरथ क़ि संताने
मिटा रही है मुझे
अपनी आने वाली पीढ़ियों को पापमय करने हित
आखिर तब कौन  हरेगा उनके पाप..?

Friday, July 16, 2010

नेता जी

चुनाव जीतने के बाद
पहली बार  आये हैं नेता जी
अपने क्षेत्र में
पुलिस मौजूद है
पहरेदारी में
और सभी करीबी भक्त
व्यस्त है उनकी आरती ,पूजा  करने में
पर विडंबना यह है क़ि देखो तो
अभी चुनाव से ठीक पहले यही नेता
जिस जनता के सामने
हाथ जोड़कर गिडगिडा रहे थे
अपने पक्ष में वोट देने को
आज वही जनता
वोट देने के बाद
नेता जी के बंगले के बाहर हाथ जोड़ कर खडी
तरस रही है नेता जी की एक झलक पाने को...!!

Wednesday, July 14, 2010

मगर फिर भी न जाने क्यूँ

तू पागल है उसे ऐसा मै हर बार कहता हूँ  
मगर फिर भी न जाने क्यूँ मुझी से प्यार करता है
मुझे देखे इसी हसरत से छत पे रोज आता है
वहां आकर न जाने क्यूँ वो नजरें भी चुराता है
वो ज़माने याद है मुझको वो नखरे याद आते है
वो दुपट्टे से तेरा चेहरा छिपाना और हंस देना
तेरा गिरना फिसलकर और मुझको हाथ दे देना
बिना बोले तेरा आँखों से अपनी बात कह देना
वो बारिश का महीना और किश्ती  वो कागज की
तेरा उसके लिए लड़ना और घर पे आके कह देना
वो ज़माने याद है मुझको वो नखरे याद आते है
तू पागल है उसे ऐसा मै हर बार कहता हूँ  
मगर फिर भी न जाने क्यूँ मुझी से प्यार करता है...!!

Sunday, July 11, 2010

दिन ढले जा रहे है

दिन ढले जा रहे है,
बिना कुछ बोले
एकदम चुपचाप
अपने समय पर नियत,


दिनों के तो पैर भी नहीं होते,
सो वो बढे जा रहे है
बिना अपने निशान छोड़े


दिनों के तो पर भी नहीं होते,
इसीलिए वो उड़े जा रहे है
बिना टूटे हुए पंख छोड़े,


दिनों को कोई लेना देना नहीं है
इन दुनियावी झंझlवातों से


चाहे हम उठे दस बजे या
सोने जाये दस बजे,


चाहे हम अपना काम करे या
यूँ ही व्यर्थ बातो में
अपना दिन गुज़ार दें,


वो तो रहे है हमेशा से ही
चाक चौबंद समय के पाबंद
वो तो हमेशा से पीढ़ी दर पीढ़ी
गुजरते रहे थे,गुजरते रहे है,गुजरते रहेंगे
और ये हम ही है जो उन्हें ऐसे ही
गुजरते हुए
देख रहे थे देख रहे है
पर क्या देखते रहेंगे यूँ ही...???

Thursday, July 8, 2010

कुछ हाइकु कवितायेँ भाग-२

(१)- दरीचे खुले
          हवा के साथ आयी
      तेरी खुशुबू |

 

(२)- कह भी तो दो
           कहना है जो,वर्ना
      रोना है क्या?
 
(३)- उडी चिड़िया
         पंखों को फैलाकर
       दाना लेकर |
 

(४)- उसने कहा
           हम साथ चलेंगे
     बन के साया |
 

(५)- पत्थर आया
           टूटा आइना जैसे
      मेरा विश्वाश |

Monday, July 5, 2010

प्राचीन भारत मे धातु विज्ञानं की उन्नत परंपरा

आपको बताना चाहूँगा क़ि आज जो दुनिया के वैज्ञानिक बेस्ट क्वालिटी  क़ि जो स्टील बना रहे है उसमे भी ये गुण नहीं है क़ि वह जंग रहित हो| परन्तु भारत में दशवीं शताब्दी में जन्गरहित स्टील बनता था और काफी बड़े स्तर पर स्टील का निर्माण होता था| जहा १० वीं  शताब्दी के निर्माण है वहा पर अगर तब के लोहे  का इस्तेमाल हुआ है उस लोहे में एक इंच भी जंग नहीं लगा है भारत में अब भी ऐसे कई घंटे ,दिल्ली के मेहरावली में स्थित  मीनार  इसकी जीती जागती मिसाले है |अंग्रेजों के दस्तावेज बताते है क़ि एक अंग्रेजी धातुविज्ञानी विलियम स्कॉट भारत में अभ्यास के लिए आया था| उस विलियम स्कॉट के अनुसार भारत  में  कम से कम २०००० से अधिक फैक्ट्रियां है भारत में स्टील बनाने की| वो कहता है की भारत में जो लोग इस कम में लगे हुए है वो शुशिक्षित लोग है भले ही उनके पास डिग्रियां नहीं है |उन लोगो को पता है की कितने तापमान पर जाकर लोहा पिघलता है और बेहतर स्टील बनाने के लिए उसमे क्या क्या मिश्रण करना पड़ेगा | आपको मालूम होगा की स्टील बनाना एक हाईटेक कार्य है जीरो टेक्नोलोजी  का कार्य नहीं है | स्टील बनाने के लिए सबसे पहले तो चाहिए ब्लास्ट फर्नेस और वो भी ऐसी फर्नेस जिसमे की १४०० डिग्री C का तापमान उत्पन्न हो सके |अब १४०० डिग्री C तापमान पैदा करने वाली भट्टियाँ (फर्नेस ) स्कॉट के हिसाब से इस देश में २०००० से अधिक है यानी भारत के प्रत्येक गाँव में उपलब्ध है जहा पर कच्चा लोहा मिलता है | उसके अनुसार जो २०००० से ज्यादा प्रोडक्सन यूनिट  है उनका उत्पादन पूरी दुनिया में भेजा जा रहा है बिकने के लिए | स्कॉट के अनुसार ही ईस्ट  इंडिया कंपनी अपने जहाजो के निर्माण के लिए भारत के स्टील का उपयोग करती है और ऐसा जहाज लगभग ८५-९० साल तक चलता है | स्कॉट के अनुसार दुनिया के किसी अन्य देश के पास इतनी उन्नत तकनीकि नहीं है स्टील बनाने की| जब वो इंग्लॅण्ड में जाकर वहा की संसद में कहता है की हम लोगो को भारत में जाकर स्टील बनाना सीखना  चाहिए तो सरकार वहा से कई छात्रों  को भारत में प्रशिक्षण लेने के लिए भेजती है जो की भारत में अगरिया जाती के लोगो से प्रशिक्षण लेते है  स्टील बनाने का |
       अगरिया एक वनवासी जनजाति है भारत में सबसे ज्यादा झारखण्ड में फिर छात्तिसघढ़  में है |जो लोग छत्तीसगढ़ या आसपास के रहने वाले है वो जानते होंगे की छात्तिसघढ़ के सरगुजा जिले में सबसे ज्यादा अगरिया जाती के लोग रहते है | वो आज भी अपनी परंपरा के अनुसार दादा,नाना ,की पीढ़ी से स्टील बनाने का काम कर रहे है बस कमी है तो इतनी की उनके पास मेटेलेरजी(धातु विज्ञानं ) की डिग्री नहीं है | लेकिन ज्ञान इतना है की छोटी सी फर्नेस में १४०० डिग्री का तापमान पैदा कर ले जबकि इतने ही तापमान को पैदा करने में बड़ी बड़ी कंपनियों को करोडो रुपये खर्च करने पड़ते है |

Saturday, July 3, 2010

तुम्हारी याद के बादल

अरे देखो तो
इन पर्वतों के कन्धों पर
लदे है ये
शरारती बच्चों क़ि तरह
शरारत करते हुए
खेलते उमड़ते घुमड़ते बादल|

ठीक वैसे ही
जैसे क़ि मेरे  दिमाग पर
मेरी याददाश्त पर लदे हों
बरस जाने को
एक दम आतुर
तुम्हारी याद के बादल...!!

Thursday, July 1, 2010

एक और एक बराबर दो रोटियां

वहां एक क्लास में
एक अध्यापक महोदय
पूछ रहे थे प्रश्न
पढाये हुए पाठ में से
अपने क्लास में उपस्थित छात्रों से
इसी क्रम में
उन अध्यापक महोदय ने
सामने बैठे एक छात्र से पूछा क़ि
बताओ बेटा एक और एक
होते है कितने..?
तब वह सामने बैठा छात्र
जो क़ि कई दिन से भूखा था
उसने तपाक से उत्तर दिया
क़ि
गुरु जी
एक और एक बराबर दो रोटियां....!!

Tuesday, June 29, 2010

कुछ हाइकु कविताये

(१) पानी बरसा
महक उठी मिटटी
हरी हुयी धरा |

(२) शौर्य  पर्याय
पूछ लिया बच्चे से
बोला भारत|

(३) कल फिर से
मर गया है भूखा
कहाँ है दानी?

(४) सूर्य निकला
फिर कमल खिले
धरा बौरायी|

(५) हुआ अँधेरा
धरा पे छाये व्योम
यादों पे जुल्फें |

(६) नेता आये
तोरण द्वार बंधे
बरसे वादे|

(७) बसंत आया
गुलशन महके
पंक्षी  चहके|

(८) तन बिसरा
मन भी भूल गया
तू जब आया |

(९) रिक्शे वाले को
गाली दी सवारी ने
गुस्सा  आया|

(१०) बोलो बोलो तो
अरे कुछ बोलो तो
बोला जाने दो |

Sunday, June 27, 2010

ऐ मेरे क्रोध

ऐ मेरे क्रोध
तुम कब आये
और आकर  चले भी गए
पर छोड़ गए पीछे निशान
अपने आने के,

पर अरे भले आदमी
कम से कम एक पाती ही भेज देते
अरे छोडो ये आधुनिक जमाना है
कम से कम एक एस.एम्. एस. ही कर देते
जिससे  अपने आने की  खबर  देते
ताकि मै हो जाता सचेत
तुम्हारे आने से पहले ही
तुम्हारी आव-भगत करने को
और शायद तब बच जाता
ये नुकसान होने से
जो हुआ है मुझे
तुम्हारे बिना बताये आने से,,,!!

Friday, June 25, 2010

इस भारत भूमि पर पुनः पधारो

दूर तक फैला घना कुहासा है,
देता कुछ नहीं दिखाई है,
फिर आज तेरे बच्चों ने ही,
ऐ भारत माँ तेरी हंसी उड़ाई है,
संस्कृतियाँ हो रही शून्य है,
पश्चिमी झंझावातों में पड़कर,
जो चले आ रहे मानव मूल्य सदियों से,
बिक रहे आज वो कौड़ी कौड़ी,
हाय यहाँ कितने ही आक्रांताओं ने,
तुझ पे मन भर के अत्याचार किये,
किन्तु सहे तूने धीरज धर,
क्यूंकि तेरे बच्चे थे उनसे डटकर जूझे ,
पर आज त्रस्त है तू अपनी निज संतति से,
और व्यथित तू उनके काले कृत्यों से,
कर रही पुकार तू बस यही बार बार,
हे तिलक बोस, अशफाक, भगत,..
अपनी माँ क़ी सुधि धारों,
करने घावों से मुक्त मेरे तन को,
इस भारत भूमि पर पुनः पधारो...!!

Tuesday, June 22, 2010

मेरी मौत भी गिनना

एक मंत्री जी ने मंच से
अपनी सरकार की,
सौ दिन की उपलब्धियां
यथाशक्ति गिनायीं
तब नीचे  खड़ी जनता ने भी,
अपनी आदत  के अनुसार ही
पुरजोर  तालियाँ बजायीं
मंत्री जी जब थक कर नीचे उतरे
तभी एक बूढी माँ
किसी तरह सभी  का मान मुनौव्वल करती हुयी
मंत्री जी तक पहुंची,
और उनसे कहने लगी उनके भाषण से एकदम हटकर,
वोह बोली साहब..
आटा  इतना महंगा है..
सब्जी इतनी महँगी है,
दाल इतनी महँगी है,
चूल्हा जलाने  के लिए लकड़ी इतनी महँगी है,
पर देखो तो आपके राज में साहब,
जीवन कितना सस्ता है....
और तुम जानते हो साहब,
मैंने अपनी पूरी जिंदगी भर
सस्ती चीजो में ही गुजारा किया है
तो अब तुम ही कहो साहब..
क्या अब मै जीवन त्याग दूँ...?
और हा  साहब
तब तुम अगली  बार 
अपनी उपलब्धियों  में
मेरी मौत भी गिनना...!!





Sunday, June 20, 2010

द्वादश ज्योतिर्लिंग


1-सोमनाथ

* इसा पूर्व ६४९- भव्य मंदिर था| समुद्री डाकुओं द्वारा सोमनाथ मंदिर लूटा गया|
* इसवी ४०६-सोमनाथ अस्तित्व में(प्रादुर्भाव)
* सन ४८७-शैव भक्त पल्लवी द्वारा पुनर्निर्माण (राजा भोजराज परमार)
* सन १०२५- महमूद गजनवी द्वारा आक्रमण |
* सन ११६९- राजा कुमार पल द्वारा पुनर्निर्माण कराया गया |
* सन १२९७- अलाउद्दीन खिलजीद्वारा आक्रमण|
* सन १३९०- मुजफ्फर शाह प्रथम द्वारा आक्रमण |
* सन १४९०- मोहम्मद बेगडा द्वारा आक्रमण |
* सन १५३०- मुजफ्फर शाह द्वितीय द्वारा आक्रमण |
* सन १७०१- औरंगजेब द्वारा आक्रमण |
* सन १७८३- महारानी अहिल्याबाई द्वारा मंदिर बनबाया गया |
* ११ मई सन १९५१-सरदार बल्लभभाई पटेल क़ि अगुआई में डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा प्राण प्रतिष्ठा |
* इब्त अशीर ने रख रखाव एवं पूजन अर्चन के बारे में लिखा है क़ि दास हजार गाँव क़ि जागीर मंदिर के लिए निर्धारित है |मूर्ति के जलाभिषेक के लिए गंगा जल आता है|एक हजार पुजारी पूजा करते है|मुख्या मंदिर छप्पन जडित खम्भों पर आधारित है|


२-मल्लिकार्जुन

* शैल पर्वत पर स्थित |
* पारवती-मल्लिका शिव-अर्जुन |
* श्री शैल पर्वत कर्नूल जिला, आंध्र प्रदेश|
* लगभग दो हजार वर्षपुराना|
* भगवन शंकर ने अपने रुष्ट पुत्र कार्तिकेय को मानाने के किये शिव-शक्ति के रूप में यहाँ पधारे|
* यहाँ पारवती को माधवी या भ्रमराम्बा के नाम से पुकारा जाता है|


३- महाकालेश्वर

* क्षिप्रा नदी पर श्थित|
* कनक,श्रुंग,कुम्भ स्थली,कुमुद्वती आदि नामो से जाना जाता है|
* आचार्य श्रेष्ठ संदीपनी का आश्रम|
* भगवन शंकर के द्वारा त्रिपुरासुर का वध |
* कुम्भ स्थल प्रति बारहवें वर्ष |
* मौर्यकाल में उज्जेयनी मालवा प्रदेश की राजधानी |
* सम्राट अशोक के पुत्र महेंद्र व् पुत्री संघमित्रा का प्रवज्य धारण |
* भर्तहरी,विक्रमादित्य ,भोज ने वैभव बढाया |
* कालिदास वररुचि,भारवि,आदि कवियों-लेखको एवं वराहमिहिर का कार्यक्षेत्र |


४-ओंकारेश्वर

* ओंकारेश्वर पर्वत पर,नर्मदा नदी का तट |
* मान्धाता द्वीप या शिवपुरी कहा जाता है|
* ओंकारेश्वर एवं अमरेश्वर या ममलेश्वर के रूप में जाना जाता है |
* विन्ध्याचल पर्वत ने भगवन ओंकारेश्वर की अर्चना की |
* शिव-विग्रह के पास में ही पारवती की और मंदिर के परकोटे में पञ्चमुखी गणेश स्थित |


५-केदारनाथ

* सत्य युग में उपमन्यु ने यहाँ भगवन शिव की आराधना की|
* द्वापर में पांडवो ने यहाँ तपस्या की|
* नर-नारायण ने शिव की आराधना की|
* अर्जुन ने दिव्यश्त्रों की प्राप्ति के लिए तपस्या की|
* समुद्र तट से ६९४० मी० की ऊँचाई पर स्थित |
* मन्दाकिनी केदारनाथ से चलकर रुद्रप्रयाग में अलकनंदा मिलती है |अंत में भागीरथी में मिलकर पतित पावनी गंगा बन जाती है|
* गौरी कुन्ड में माँ पारवती ने स्नान किया |


६-भीमाशंकर

* गोहाटी ब्रम्हपुर पर्वत पर स्थित |
* मूलनिवास सह्याद्री है|भीमा नदी का तट|
* डाकिनी शिखर भी कहते है|
* नाना फडनवीस बनवाया नया मंदिर |
* पुराना नाम डाकिनी था


७- विश्वनाथ

* काशी में गंगा नदी पर स्थित है |
* शक्ति पीठ ,ज्योतिर्लिंग तथा सप्तपुरियों में से एक |
*वरुना नदी एवं असी नदी के मध्य स्थित इस कारन वाराणसी नाम pada
* बौद्ध तीर्थ सारनाथ पास में स्थित है |
* शैव ,शाक्त , वैष्णव ,बौद्ध ,जैन पंथों के उपासकों का काशी में संगम|
* सातवें तथा तेइसवें तीर्थंकरों का यहाँ प्रादुर्भाव हुआ |
* आदि शंकराचार्य ने अपनी धार्मिक दिग्विजय यात्रा प्रारंभ क़ि |
* कबीर ,रामानंद ,तुलसीदास सद्रश ने कर्न्भूमि बनाया |
* तीन विश्वविद्यालय तथा कई संस्कृत अध्ययन केंद्र |
* मणि कर्णिका घाट ,दशाश्वमेघ घाट,केदार घाट,हनुमान घाट एवं हरिश्चंद्र घाट प्रमुख है |
* भारत क़ि सांस्कृतिक राजधानी |
* औरंगजेब ने शिव के मंदिर ध्वस्त कराये |भाग्नाव्शेशो पर मस्जिद बनवाई|


८-त्रयम्बकेश्वर

* ब्रम्ह्गिरी पहुँचने के लिए ७०० सीढ़ियों क़ि यात्रा तय करनी पड़ती है |
* ब्रम्हागिरी पर्वत एवं गोदावरी,गौतमी तट पर स्थित|
* सिद्ध ऋषि गौतम क़ि तपस्थली |
* मुख्या मंदिर में तीन विग्रह ब्रम्हा,विष्णु,महेश |
* मुख्या मंदिर के दूसरी ओर राम-लक्षमण कुन्ड स्थित है |
* कुम्भ स्नान के समय सभी तीर्थ गोदावरी तट पर आकार विराजमान हो जाते है |


९- वैद्यनाथ

* वैद्यनाथं चिता भूमौ परल्यम वैद्यनाथं च के अनुसार जसीडीह देवधर स्थान पर स्थापित|
* त्रेतायुग में रावन द्वारा तपस्या |
* शिवकुंड नमक सरोवर |
* कार्तिक माघ और फाल्गुन क़ि पूर्णिमा व चतुर्दशी को मेला लगता है |
* पूर्व रियासत हैदराबाद के गाँव परली के शिवमंदिर को इस ज्योतिर्लिंग का स्थान होने का श्रेय प्राप्त है|
* परली स्थित ज्योतिर्लिंग परभानी के पास एक पर्वत शिखर पर बने मंदिर पर विराजमान है |


१०-नागेश्वर

* द्वारिका के पास दारुक नमक वन के पास|
* आस-पास वेणी नाग ,धौले,कालिया जैसे नागों के स्थल |
* इस ज्योतिर्लिंग क़ि स्थापना एक शिवभक्त सुप्रिया व्यापारी से सम्बंधित है |
* शिवपुराण के अनुसार द्वारिका के पास स्थित नागेश्वर क़ि ज्योतिर्लिंग के रूप में पुष्टि दृढ होती है |


११- रामेश्वरम

* भगवन श्रीराम द्वारा स्थापित|इसी नाते रामेश्वरम नाम पड़ा |
* चारो धमो में से एक धाम |
* लक्षमनेश्वर शिव मंदिर,पंचमुखी हनुमान,श्री राम जानकी मंदिर |
* रामेश्वर के परकोटों में २२ पवित्र कूप है |
* लंका पर चढ़ाई से पूर्व भगवन श्री राम ने यहाँ पर शिव पूजन कर आशीर्वाद प्राप्त किया |
* पवन पुत्र हनुमान जी के द्वारा कैलाश से लाया गया शिवलिंग भी पास में ही स्थापित है |
* अश्वत्थामा द्रौपदी पुत्रों क़ि हत्या का प्रायश्चित करने यहाँ आया था |
* रावन के वध के बाद भगवन श्री राम द्वारा ब्रम्ह हत्या के प्रायश्चित का स्थान |
* महाशिवरात्रि,वैशाख पूर्णिमा,ज्येष्ठ पूर्णिमा,अष्टमी,नवरात्र ,रामनवमी,वर्ष प्रतिपदा तथा विजयदशमी आदि पर्वों पर विशेष पूजा |


१२-घुमेश्वर

* घ्रीश्नेश्वर नाम से भी जाना जाता है |
* बेसल गाँव में दौलताबाद,एलोरा गुफा के डेढ़ किलोमीटर पर स्थित |
* महारानी लक्ष्मीबाई ने अतिसुन्दर मंदिर बनबाया |
* मंदिर के पास शिवालय नामक पवित्र सरोवर स्थित |
* पास में ही शहस्रलिंग,पातालेश्वर ,व सुरेश्वर के मंदिर स्थित है |
* घुमेश्वर क़ि कथा घुश्मा और सुद्रेहा पर आधारित है |
                 (घुमेश्वर महिमा )
  " ईद्रषम चैव लिंगम च द्रष्टव पाये: प्रमुच्यते|
      सुखं संवर्ध्ते पुंसां शुक्ला पक्षे यथा शशि ||"

Tuesday, June 15, 2010

आख़िर वो शख़्श कौन था

कल शाम एक बार फिर,
मिला उससे
फिर वही उसी गर्मजोशी के साथ
जैसे मिलता था
पहले कभी
एक बार फिर शुरू हुयी कुछ बातें
कुछ पुरानी
कुछ नयी,
कुछ कही
कुछ अनकही,
फिर ऐसे ही उस
मुलाकात के बाद
लौट आया अपने घर
और फिर रात भर आँखों से नींद जाती रही
केवल सोंचता रहा
उस मुलाकात के बारे में,
क़ि उसने भी मुलाकात के दौरान
कई बार 'मै' कहा,
और मैंने भी कई बार 'मै' कहा,
और अब मै परेशान हूँ क़ि
आखिर ये शख्श 'मै' है कौन..?
जिसने कल मुझ दोनों को
'हम' नहीं होने दिया...!!

Saturday, June 12, 2010

आज इच्छाएं मेरी उड़ रही है तितली बनकर








आज इच्छाएं मेरी
उड़ रही है
जैसे उडती तितलियाँ हो,
वो ठहरती ही नहीं
किसी पल
किसी एक फूल  पर
और ये मेरा नादाँ मन
कर रहा है कोशिश पकड़ने की
उन तितली बनी इच्छाओं को
एक अबोध बालक की तरह
और फिर चाहता की कैद कर ले उन्हें
जिससे वो न उड़ सके दुबारा,
पर हर बार की तरह ही
इस बार भी
हो रहा है मन असफल मेरा
न तो वह बच्चा ही पकड़ पा रहा है तितलियों को
और न ही ये मेरा मन मेरी उन  इच्छाओं को
जो खुद भी नाच रही है
और नचा रही है मुझे
कब से..?
जब से आंख खोली है तबसे...!!


Tuesday, June 8, 2010

गाँधी जी का तीन बन्दर का सिद्धांत-एक नकारात्मक सिद्धांत

वैसे तो गाँधी जी ने अपनी जिंदगानी में कई सिद्धांत दिए है पर उनका एक ऐसा सिद्धांत  जिस पर आज तक देश विदेश में कई जगह उसका उपयोग कई लोंगो ने विभिन्न विभिन्न रूप में किया है...और वो सिद्धांत है गाँधी जी का तीन बंदरों का सिद्धांत.हम सभी  इस सिद्धांत को बचपन से पढ़ते आये है,
खासकर मुझे इस सिद्धांत  के इन तीन बंदरों ने काफी बहलाया है बचपन में.....जब मै कुछ समझ नहीं पlता था बस इन्ही तीन बंदरो की उल जुलूल हरकतों को किताब में देखा करता था..

हा तो मै सिर्फ ये कहना चाहता हूँ की गाँधी जी का ये सिद्धांत सिर्फ और सिर्फ नकारात्मकता पर आधारित है...कैसे है ये तो मै बताऊंगा पर इससे पहले आइये एक बार फिर हम इस सिद्धांत को ताज़ा कर ले....


गाँधी जी का तीन बन्दर सिद्धांत--
गाँधी जी के अनुसार तीन बन्दर है....अपनी सहजता के लिए हम उनका नामकरण कर रहे है.|मान लिया ये तीन बन्दर है जिनका नाम है रामू ,श्यामू,और कालू |

तो गाँधी जी के अनुसार पहला बन्दर जिसे कि हमने रामू कहा है, उसने  अपने हाथ अपने कानों पे रखे  है और वो ये सन्देश दे रहा है की बुरा मत सुनो |
दूसरा बन्दर यानी कि श्यामू है जिसने अपनी आँखों पर हाथ रखे   है और वो ये सन्देश दे रहा है की बुरा मत देखो |
तीसरा बन्दर जो कि कालू है और उसने अपने मुंह पर हाथ रखे है और वो सन्देश दे रहा है कि बुरा मत बोलो |

ये तो हुआ तीन  बन्दर का सिद्धांत गाँधी जी के अनुसार |

पर मेरे हिसाब से ये सिद्धांत एकदम नकारात्मक है.....और ऐसा कहकर मै गाँधी जी पर कोई आक्षेप भी नहीं करना चाहता हूँ | बेशक वो एक महँ व्यक्ति थे|
अब सवाल ये है की अगर ये सिद्धांत नकारामक है तो फिर सकारात्मक सिद्धात  क्या हो सकता था...?
तो मेरे अनुसार  इसी बात को सकारात्मक तरीके से इस प्रकार कहा जा सकता था क़ि गाँधी जी केवल एक बन्दर ही बैठाल देते और जिसके हाथ सामने अपनी मेज पर रखे होते.......और गाँधी जी उस बन्दर से  ये सन्देश देते क़ि अच्छा सुनो, अच्छा देखो, और अच्छा बोलो..|

दूसरी बात जो मुझे गाँधी जी के इस सिद्धांत में सही नहीं  लगी वो ये क़ि ...

 
१- क़ि यदि वो बन्दर जिसे हमने रामू कहा है और जिसने अपने हाथ अपने कानो पे रखे है और गाँधी जी के अनुसार वो बुरा नहीं सुने........तो भईया इस बात की क्या गारंटी है क़ि वो बन्दर बुरा नहीं देखेगा और बुरा नहीं बोलेगा..?

२- दूसरा जो बन्दर है जिसे क़ि हमने श्यामू कहा है और जिसने अपने हाथ अपनी आँखों पे रखे है औए गाँधी जी के अनुसार वो बुरा नहीं देखे....तो भईया इस बात की क्या गारंटी है क़ि वो बन्दर बुरा नहीं सुनेगा और बुरा नहीं बोलेगा..?


३- तीसरा जो बन्दर है जिसे क़ि हमने कालू कहा है और जिसने अपने हाथ अपने मुंह पर रखे हुए है और गाँधी जी के अनुसार वो बुरा नहीं बोले ...तो भईया इस बात की क्या गारंटी है क़ि वो बन्दर बुरा नहीं सुनेगा और बुरा नहीं देखेगा...?

Saturday, June 5, 2010

मेरा नाम अब मेरे पास था

शाम भी ढलने को थी
मन हो रहा था बोझिल मेरा
तो सोचा क़ि क्यूँ ना जाऊं
समुंदर के तट पर
और वहाँ डूब रहे सूरज को,
निहारूं देर तक,
खेलूँ ताजी हवा के संग
फिर मैं वहाँ गया भी|
पर अरे ये क्या,
यहाँ तो मेरा नाम लिखा है किसी ने
इस रेत के घरौंदे के पास,
जो कि बनाया है किसी ने
अपने पैर के पंजों का सहारा लेकर,
मैं उसे देख ही रहा था कि तभी
अचानक आ गयी वहाँ
समुंदर की एक तेज लहर,
और बहा ले गयी अपने साथ ही
वह मेरा नाम भी उस घरौंदे के साथ ही
फिर बहुत देर तक सोचता रहा कि
किसने लिखा होगा ये नाम मेरा...

तभी एकदम से
तुम्हारे इस तट पर रोज
आने की आदत का ख़याल आया
और मन मे फिर वही
पुरानी यादों का उबाल आया|
फिर तो मैं लगा ढूढ़ने
रेत के हर उस कण को
जो शरीक था
मेरे नाम की लिखावट मे
और कुछ मशक्कत के बाद ही
मैने ढूँढ ही लिए वो सारे कण..

पर तुम्हे होगा अब पूछना
एक सवाल अपनी आदतानुसार ही
की ऐसा मैने किया कैसे..?
ये तो बहुत मुश्किल है
जो खो जाए कण रेत के
ढूँढ ले कोई उन्हे
वापस फिर से..!!

पर मेरे लिए तो ये
बहुत ही आसान निकला
मैने उस जगह की सारी रेत को इकट्ठा किया
फिर हर एक कण की महक को महसूस किया
और फिर जिस जिस कण मे भी
आयी महक-ए-हिना मुझको
मैं उन्हे चुनता गया
ऐसे ही कुछ देर बाद ही
वो मेरा नाम जो तुमने लिखा था
अब मेरे पास था...!!