कल शाम एक बार फिर,
मिला उससे
फिर वही उसी गर्मजोशी के साथ
जैसे मिलता था
पहले कभी
एक बार फिर शुरू हुयी कुछ बातें
कुछ पुरानी
कुछ नयी,
कुछ कही
कुछ अनकही,
फिर ऐसे ही उस
मुलाकात के बाद
लौट आया अपने घर
और फिर रात भर आँखों से नींद जाती रही
केवल सोंचता रहा
उस मुलाकात के बारे में,
क़ि उसने भी मुलाकात के दौरान
कई बार 'मै' कहा,
और मैंने भी कई बार 'मै' कहा,
और अब मै परेशान हूँ क़ि
आखिर ये शख्श 'मै' है कौन..?
जिसने कल मुझ दोनों को
'हम' नहीं होने दिया...!!
अच्छी कविता कह गए. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteGaharayi liye huye sundar rachna...
ReplyDeleteसार्थक कविता।
ReplyDeleteJab Main ko main se htadoge
ReplyDeleteto hee koch paoge
sach kaha main ke age soch hi nahin pate.sankat bas isi main ka hai.varna ham se tau sari samsayayen hi hal ho jayen
ReplyDeletegood poemvandana
गहरी सोच प्रकट करती ये रचना ......बहुत बढ़िया प्रस्तुती
ReplyDeletebahut khoob sir
ReplyDeleteखुद को तलाशने में एक ज़िंदगी भी कम पड़ जाती है ..आप खुद से मिल तो लिए...मैं को मैं से जोड़कर हम बन ही जायेगा एक दिन..अच्छी कविता है .
ReplyDeleteबढ़िया है!
ReplyDeleteAchhee rachna.....
ReplyDeleteMain se Hum tak ke safar ke liye meri dheron shubhkaamnaen!
Ashish :)
sundar kavita
ReplyDeleteहुजुर यूं ही लिखते रहें...
ReplyDeletebahut khub sir.........shubhkamnayein
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