आज इच्छाएं मेरी
उड़ रही है
जैसे उडती तितलियाँ हो,
वो ठहरती ही नहीं
किसी पल
किसी एक फूल पर
और ये मेरा नादाँ मन
कर रहा है कोशिश पकड़ने की
उन तितली बनी इच्छाओं को
एक अबोध बालक की तरह
और फिर चाहता की कैद कर ले उन्हें
जिससे वो न उड़ सके दुबारा,
पर हर बार की तरह ही
इस बार भी
हो रहा है मन असफल मेरा
न तो वह बच्चा ही पकड़ पा रहा है तितलियों को
और न ही ये मेरा मन मेरी उन इच्छाओं को
जो खुद भी नाच रही है
और नचा रही है मुझे
कब से..?
जब से आंख खोली है तबसे...!!
उड़ रही है
जैसे उडती तितलियाँ हो,
वो ठहरती ही नहीं
किसी पल
किसी एक फूल पर
और ये मेरा नादाँ मन
कर रहा है कोशिश पकड़ने की
उन तितली बनी इच्छाओं को
एक अबोध बालक की तरह
और फिर चाहता की कैद कर ले उन्हें
जिससे वो न उड़ सके दुबारा,
पर हर बार की तरह ही
इस बार भी
हो रहा है मन असफल मेरा
न तो वह बच्चा ही पकड़ पा रहा है तितलियों को
और न ही ये मेरा मन मेरी उन इच्छाओं को
जो खुद भी नाच रही है
और नचा रही है मुझे
कब से..?
जब से आंख खोली है तबसे...!!
ये इच्छायें अनंत होती हैं और हाथ कब आती हैं…………बहुत सुन्दर्…………।कल के चर्चा मंच पर आपकी पोस्ट होगी।
ReplyDeleteये इच्छाएं तो होती ही है...परिंदों की तरह...उडती रहती है इधर उधर...कौन रोक पाया है इन्हें...
ReplyDeleteशानदार पोस्ट है...
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteप्रशंसनीय ।
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteमासूम तितलियां हैं ..लम्बे सफर में हैं..इन्हें अभी बहुतसे उपवनों की सैर करनी है..
ReplyDeleteदुआ है सफर अच्छा कटे..
सुंदर भाव लिए कविता |बहुत बहुत बधाई |
ReplyDeleteआशा
आ तुझे दुनिया की सैर कराऊँ,
ReplyDeleteथाम के मेरा हाथ चल।
ज़मीं पर तो बहोत चल चुकी हो,
आज आसमाँ पे मेरे साथ चल।
bahut umda
ReplyDeletehttp://iisanuii.blogspot.com
bahut sundar rachna...
ReplyDeletemaanna padega janaab aapko..............kashish hai apki kavitaon mein,,,,,,,,,
ReplyDeletesunder kavita hai.
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