Saturday, June 12, 2010

आज इच्छाएं मेरी उड़ रही है तितली बनकर








आज इच्छाएं मेरी
उड़ रही है
जैसे उडती तितलियाँ हो,
वो ठहरती ही नहीं
किसी पल
किसी एक फूल  पर
और ये मेरा नादाँ मन
कर रहा है कोशिश पकड़ने की
उन तितली बनी इच्छाओं को
एक अबोध बालक की तरह
और फिर चाहता की कैद कर ले उन्हें
जिससे वो न उड़ सके दुबारा,
पर हर बार की तरह ही
इस बार भी
हो रहा है मन असफल मेरा
न तो वह बच्चा ही पकड़ पा रहा है तितलियों को
और न ही ये मेरा मन मेरी उन  इच्छाओं को
जो खुद भी नाच रही है
और नचा रही है मुझे
कब से..?
जब से आंख खोली है तबसे...!!


13 comments:

  1. ये इच्छायें अनंत होती हैं और हाथ कब आती हैं…………बहुत सुन्दर्…………।कल के चर्चा मंच पर आपकी पोस्ट होगी।

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  2. ये इच्छाएं तो होती ही है...परिंदों की तरह...उडती रहती है इधर उधर...कौन रोक पाया है इन्हें...

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  3. शानदार पोस्ट है...

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  4. मासूम तितलियां हैं ..लम्बे सफर में हैं..इन्हें अभी बहुतसे उपवनों की सैर करनी है..
    दुआ है सफर अच्छा कटे..

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  5. सुंदर भाव लिए कविता |बहुत बहुत बधाई |
    आशा

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  6. आ तुझे दुनिया की सैर कराऊँ,
    थाम के मेरा हाथ चल।
    ज़मीं पर तो बहोत चल चुकी हो,
    आज आसमाँ पे मेरे साथ चल।

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  7. maanna padega janaab aapko..............kashish hai apki kavitaon mein,,,,,,,,,

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