पूरनमासी की रात थी,
चाँदनी बरसात थी,
कुछ देर छत पे बैठा ही था,
कि तभी अचानक,
मोहल्ले के दो घरों मे
सुनी बच्चों के रोने की आवाज़े,
कुछ देर तो रुका पर जब नही माना मन
और तब फिर दोनो ही घरो मे गया मे,
और देखता हू क़ि,
यहाँ एक घर मे
एक बच्चा रो रहा था बेधड़
चाँद को देखकर,
और कह रहा था अपनी माँ से
की माँ मुझे खेलना है,
मुझे खिलौना दो चाँद वाला,
वही दूसरे घर मे,
दूसरा बच्चा भी रो रहा था बेधड़,
चाँद को देखकर,
और कह रहा था अपनी माँ से
की माँ मुझे भूख लगी है
मुझे रोटी दो चाँद जैसी,
और उन दोनो घरो मे,
दोनो ही माँ थीं एकदम असहाय सी
क्यूंकी,
एक माँ चाँद को खिलौना नही कर सकती थी,
और दूसरी माँ चाँद को रोटी नही कर सकती थी...!!
touching
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDeleteशुक्रिया मेरे छोटे भाई , इतने छोटे पर इतनी गहराई. तुम्हारी हर रचना मन को भाई .
ReplyDeleteख़ुदा तुम्हें बहुत तरक्क़ी दे .
बहुत उम्दा!! बढ़िया बिम्ब लिया.
ReplyDeleteआपकी यह कृति ह्रदय को छु गयी...
ReplyDeleteऐसे ही लिखते रेहयिगा...