ऐ मेरे क्रोध
तुम कब आये
और आकर चले भी गए
पर छोड़ गए पीछे निशान
अपने आने के,
पर अरे भले आदमी
कम से कम एक पाती ही भेज देते
अरे छोडो ये आधुनिक जमाना है
कम से कम एक एस.एम्. एस. ही कर देते
जिससे अपने आने की खबर देते
ताकि मै हो जाता सचेत
तुम्हारे आने से पहले ही
तुम्हारी आव-भगत करने को
और शायद तब बच जाता
ये नुकसान होने से
जो हुआ है मुझे
तुम्हारे बिना बताये आने से,,,!!
तुम कब आये
और आकर चले भी गए
पर छोड़ गए पीछे निशान
अपने आने के,
पर अरे भले आदमी
कम से कम एक पाती ही भेज देते
अरे छोडो ये आधुनिक जमाना है
कम से कम एक एस.एम्. एस. ही कर देते
जिससे अपने आने की खबर देते
ताकि मै हो जाता सचेत
तुम्हारे आने से पहले ही
तुम्हारी आव-भगत करने को
और शायद तब बच जाता
ये नुकसान होने से
जो हुआ है मुझे
तुम्हारे बिना बताये आने से,,,!!
बहुत सुन्दर रचना!
ReplyDeleteजय भीम
ReplyDeleteभाई सोनू जी क्रोध के साथ यही तो दिक्कत है कि वह भला आदमी नहीं है। हां यह अलग बात है कि भले आदमियों को भी क्रोध आता है, पर वह उनके वश में रहता है। तो क्रोध को दोष मत दीजिए वह तो है ही बुरा आदमी। अपने बारे में सोचिए। शुभकामनाएं।
ReplyDeleteक्रोध की फितरत है कि बिना बताये आ कर नुक्सान कर देता है....अच्छी अभिव्यक्ति
ReplyDeletebahut sundar rachana
ReplyDeleteमंगलवार 06 जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
बहुत सुंदर। क्रोध न्योता दे जाता, उसे हावी होने नही देते और अच्छे से आव भगत करते। अच्छे भाव हैं यदि ऐसा हो तो वाकई भर जायें मन के गहरे से गहरे घाव हैं।
ReplyDeleteइस विलक्षण सोच भरी रचना के लिए बधाई स्वीकार करें...
ReplyDeleteनीरज
क्या बात कही है।
ReplyDeleteपसंद करने के लिए आप सभी का आभार..!!
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