Wednesday, July 14, 2010

मगर फिर भी न जाने क्यूँ

तू पागल है उसे ऐसा मै हर बार कहता हूँ  
मगर फिर भी न जाने क्यूँ मुझी से प्यार करता है
मुझे देखे इसी हसरत से छत पे रोज आता है
वहां आकर न जाने क्यूँ वो नजरें भी चुराता है
वो ज़माने याद है मुझको वो नखरे याद आते है
वो दुपट्टे से तेरा चेहरा छिपाना और हंस देना
तेरा गिरना फिसलकर और मुझको हाथ दे देना
बिना बोले तेरा आँखों से अपनी बात कह देना
वो बारिश का महीना और किश्ती  वो कागज की
तेरा उसके लिए लड़ना और घर पे आके कह देना
वो ज़माने याद है मुझको वो नखरे याद आते है
तू पागल है उसे ऐसा मै हर बार कहता हूँ  
मगर फिर भी न जाने क्यूँ मुझी से प्यार करता है...!!

4 comments:

  1. खूबसूरत भाव है।

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  2. bahut achha likha hain sanu ji.

    aksar aisa hota hai , jo sabse priy hota hai ussi se adhikaarvash hum jhagda bhi khoob karte hain.

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