Tuesday, October 26, 2010

बौद्धिक-वैश्यावृत्ति और कश्मीर समस्या

इन दिनों हमारे देश में राजनीतिक अतिअसंवेदनशीलता के कारन कश्मीर पिछले कुछ माह से फिर से पूरी दुनिया के समाचार पत्रों की सुर्खियाँ बना हुआ है | हद तो तब हो गयी कि जिन्हें देशद्रोह की सजा में सलाखों के पीछे होना चाहिए ऐसे कुछ अलगाववादी तत्वों ने दिल्ली में "आज़ादी -एक ही रास्ता " के नाम से  एक सभा का आयोजन किया | सभा में जो नारे लगाये जा रहे थे वो कोई कश्मीर से आये हुए  किसी एक मजहब के युवा नहीं थे बल्कि भारत में अल्पसंख्यकों को मिलने वाली हर सुविधा का उपभोग करने वाले स्थानीय युवा ही थे और और इस सभा में जो तथाकथित विद्वान मंच साझा कर रहे थे उसमे गिलानी के साथ एक ऐसी महिला थी जो भारत विरोधी किसी भी घटना का पक्ष लेने और अपनी राय व्यक्त करने से नहीं चूकती | जब उन्होंने अपनी बीती हुयी जिंदगी के ऐसे पहलुओं पर की जिन्हें सभ्य समाज अश्लील कहता है, एक किताब लिखी तो उन्हें बुकर पुरस्कार से नवाजा गया और उसके बाद तो मीडिया में वो इस तरह छाई की भारत में सिर्फ ढंग की विद्वान यही है | ये है राष्ट्रविरोधी ताकतों के ह्रदय में निवास करने वाली  अरुंधती राय | इससे पहले अभी पिछले दिनों जब नक्सलियों के सफाए के लिए जो आपरेशन ग्रीन हंट चलाया गया तो इन्होने पुरजोर विरोध किया और इससे भी पहले जब मुंबई हमला हुआ, तब इनका एक लेख एक प्रख्यात राष्ट्रीय पत्रिका में प्रकाशित हुआ जिनमे इन्होने आतंकियों को आतंकवादी न कहकर 'युवाओं के एक छोटे दल " कहकर संबोधित किया और इनके अनुसार  जिसने भारतीय सेना को ६० घंटे तक असहाय बनाये रखा | इन्हें एक टी०वी० चैनल द्वारा चलाये जा रहे फ्लैश की "पाकिस्तान बुरा है -भारत अच्छा है " ,बेवकूफाना और वाहियात लगे | उस लेख में इन्होने और भी कई आपत्तिजनक बातों का उल्लेख इस मंशा से किया कि तुरंत हुए इन हमलों की गंभीरता कम हो सके | इसके लेख को पढ़कर  मैंने भी उसी पत्रिका के अगले अंक में "अरुंधती का दुस्साहस"  नाम  से लिखा जिसमे उनके द्वारा लिखी गयी कई बातों का खंडन किया |
                                         वास्तव में सिर्फ अरुंधती राय ही नहीं बल्कि वर्तमान में उनके जैसे कई स्वयंभू विद्वान इस समय सक्रिय है जो विदेशी अखबारों ,पत्रिकाओं के लिए सिर्फ कुछ डालरों की खातिर ,और विदेशों में बैठे भारत विरोधी ताकतों से अच्छी-खासी रकम के बदले इस तरह की बाते लिखते, बोलते रहते है | इस गिरोह में आपको मीडिया के व्यक्ति भी मिल जायेंगे , कुछ  ऐसे लोग भी मिलेंगे जो गेरुआ वस्त्र धारण करते है औए अपने नाम से पहले स्वामी लिखते है ,कुछ साहित्यकार भी मिलंगे , कुछ उच्च पदों पर बैठे अधिकारी भी इसमें शामिल है तो वही अधिकतर राजनेता लगभग सभी दलों के इस गिरोह  में शामिल है |
हमारे समाज में एक ऐसी वृति है जिसे सभ्य लोग वैश्यावृति कहते है ....ठीक उसी प्रकार क्या फिर सिर्फ चाँद डालरों के लिए उस भूमि जिसे हमने भारत माँ  कहा है ,की एकता और अखंडता,भारत की मर्यादाओं, संस्कृति को तार तार करते हुए विदेश में बैठे अपने आकाओं के इशारो पर साहित्य सृजन करना, लेख लिखना, हमारे जवानों द्वारा मारे गए आतंकियों ,और पुलिस द्वारा मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों के लिए आंसू बहानाक्या ये "बौद्धिक-वैश्यावृत्ति"  नहीं है ?? इस समय भारत में यह "बौद्धिक-वैश्यावृत्ति" अपनी चरम सीमा पर है ,जिसके सामने दुनिया का सबसे बड़ा कहा जाने वाला लोकतंत्र असमर्थ नज़र आ रहा है और देशद्रोही ताकतें इसका भरपूर आनंद ले रहीं है !


                        अभी कुछ माह पूर्व एक बड़े न्यूज चैनेल के संपादक ने फेसबुक पर अपनी मूढ़ता का परिचय देते हुए ये लिखा कि "क्यों न हमें भारत और पाकिस्तान दोनों मुल्कों की शांति और सम्पन्नता की खातिर कश्मीर को पाकिस्तान को दे देना चाहिए ?क्या मै सही हू ?" मैंने उनसे कहा कि जनाब आप भारत में रहते हो भारत की खाते हो पर पाकिस्तान कि इस बात में बात क्यों मिलाते हो कि "कश्मीर के बिना पाकिस्तान अधूरा है |" चलो कुछ देर के लिए मान भी लिया कि पाकिस्तान को कश्मीर दे दिया जाये तो क्या ये समस्या हल हो जायेगी ..फिर .चीन भी लगातार कह रहा है कि  अरुणाचल हमारा है हमें चाहिए ...वो भी दे देंगे...फिर देखा देखी में एक छोटा सा देश जो कभी हमारा बहुत करीबी हुआ करता था, नेपाल .. उसने भी भारत में खटीमा तक अपनी भूमि होने का दावा किया है ..क्या उसे भी शांति और सम्पन्नता के नाम पर दे देना चाहिए ....?? और फिर क्या गारंटी इस बात की कि एक बार उन्हें भूमि देने पर वो दुबारा और भूमि हथियाने का प्रयास नहीं करेंगे ?और ये देने कि बीमारी भी न ..बहुत ख़राब बीमारी है साहब ...! एक बार किसी को लग जाये फिर छुडाये नहीं छूटती है अगर पाकिस्तान कह सकता है कि कश्मीर के बिना पाकिस्तान अधूरा है तो आप और हम  ये क्यूँ नहीं कहते कि "पाकिस्तान ,बंगलादेश, तिब्बत आदि के बिना भारत अधूरा है" ये सब भारत में  पुनः मिले और शांति के साथ रहे तो क्या सम्पन्नता नहीं आयेगी ? इससे तो हमारी मातृभूमि भारत पुनः अखंड होकर अपने दिव्य स्वरुप में शोभायमान होकर पूरे विश्व के पटल पर पुनः स्थापित हो सकेगी ..इससे बेहतर और क्या होगा ?
                                       ये भारत का दुर्भाग्य है कि इसपर  कुछ एक को छोड़ दे तो अधिकतर निम्न आत्मविश्वास से लबरेज और हीन भावना व्  तुष्टिकरण से ग्रसित राजनेताओं ने ही शासन किया है, जिनके लिए भारत की भूमि सिर्फ एक मिटटी टुकड़ा ही मात्र है और यह कहते हुए अपनी जमीन विदेशियों के पास चले जाने देते है कि अरे वहां तो घास का तिनका भी नहीं उगता , जिनकी द्रष्टि में राष्ट्र-सर्वोपरि न होकर बल्कि सत्ता-सर्वोपरि रही है | मैंने कही पढ़ा है कि जब गिलगित और बलुचिश्तान ने भारत में मिलने को  इस बात पर स्वीकार किया कि भारत को हमें आर्थिक पैकेज देना होगा ..| इस पर हमारे सत्ता में बैठे हुए नेता कई महीनो तक विचार करते रहे और अंततोगत्वा चीन ने गिलगित और बलुचिश्तान को आर्थिक पैकेज दे दिया और पाकिस्तान ने गिलगित और बलूचिस्तान को अपना राज्य घोषित कर दिया और हम सिर्फ देखते ही रह गए | ऐसे में उन शासकों  से यह उम्मीद करना कि भारत में फ़ैल रही इस अछूत वृत्ति  को रोक सकेंगे ..शायद एक कोरी कल्पना ही होगी |


                    संसार में स्वतंत्र, संपन्न और गौरवशाली राष्ट्र कि सत्ता का जीवनप्राण तो मातृभूमि कि ऐसी भक्ति है जो तीव्र, क्रियाशील, दृढनिष्ठ तथा ज्वलंत हो | हम भारतियों को तो मातृभूमि कि अति दिव्य भक्ति उत्तराधिकार में मिली हुयी है | भक्ति के वे अंगारे जो प्रत्येक भारतीय के ह्रदय में सुप्त पड़े हुए है, उन्हें प्रज्वलित किया जाना चाहिए ताकि वे मिलकर और पवित्र ज्वालाओं में परिणत होकर हमारी मातृभूमि पर भूतकाल में हुए समस्त अतिक्रमणों को भस्म करें और भारत माता के अतीत की अखंडित प्रतिमा की पुनः स्थापना कर भारत माँ को चिरमयी जगद्जननी जगदम्बा का रूप प्रदान करने का स्वप्न साकार करें |

                         

8 comments:

  1. काफ़ी सारी जानकारियाँ साझा की हैं आपने सानू भाई| सच में किसी न किसी को तो कभी न कभी एक योग्य निर्णय लेना ही होगा, पूर्वाग्रहों से बचते हुए| कोई नहीं चाहता ख़ूनख़राबा, सब को चाहिए शांति और सुकून| शायद हम अपने जीवन काल में ही इस समस्या का समाधान होते देख पाएँ|

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  2. बहुत सही और सटीक बात कही...... शाब्दिक चयन कमाल का है सानू .....धन्यवाद..... इस सारगर्भित पोस्ट के लिए.... सच में यह बहुत अफ़सोस जनक है की देश के मान की सोचने की फुर्सत नहीं है लोगों को.....

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  3. चिन्तनीय स्थिति, गहरी पोस्ट।

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  4. गंभीर आर्टिकल है|पर अरुंधती जैसे लोगो को पाकिस्तान को मुफ्त में दे देना चाहिए |

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  5. aapne achha likha hai....
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    mere blog par har hindustani ke vote ki zaroorat hai...saanu bhaiya

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  6. सानू भाई, हमारे देश की विडम्बना भी तो यही है कि यहँा अरूंधति जैसे लोगो के खिलाफ तुरन्त कोई कार्यवाही नही होती, और कसाब जैसो को तुरन्त फाँसी नही होती, वर्ना कोई इस देश की बुराई के बारे मे सोच भी नही सकता।
    आपकी पोस्ट के फूल भारत माता के चरणो मे ऐसे ही चढ़ते रहे और हमे भी प्रसाद मिलता रहे
    शुभकामनाये।

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  7. अरे वाह अपने तो बौद्धिक जगत को इन जैसे %^$*&^*&^*& लोगों के लिए एक नया शब्द "बौद्धिक वैश्यावृत्ति" दिया | इन जैसी भारत में सभी "बौद्धिक वेश्याओं" को तो खड़े खड़े फांसी दे देनी चाहिए | वैसे आपका ये वाक्य डॉयलागनुमा और मजेदार लगा "और ये देने कि बीमारी भी न ..बहुत ख़राब बीमारी है साहब ...! एक बार किसी को लग जाये फिर छुडाये नहीं छूटती है | आपका ब्लॉग अपने स्वामी की मूल विधा पर लौट रहा है ..शुभकामनायें !! जय हिंद

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  8. अरे वाह अपने तो बौद्धिक जगत को इन जैसे %^$*&^*&^*& लोगों के लिए एक नया शब्द "बौद्धिक वैश्यावृत्ति" दिया | इन जैसी भारत में सभी "बौद्धिक वेश्याओं" को तो खड़े खड़े फांसी दे देनी चाहिए | वैसे आपका ये वाक्य डॉयलागनुमा और मजेदार लगा "और ये देने कि बीमारी भी न ..बहुत ख़राब बीमारी है साहब ...! एक बार किसी को लग जाये फिर छुडाये नहीं छूटती है |"
    आपका ब्लॉग अपने स्वामी की मूल विधा पर लौट रहा है ..शुभकामनायें !! जय हिंद

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