राउल बाबा मौनमोहन सिंह से, " आप जानते है आज रात भर मम्मी परेशान थी ..उन्हें ठीक से नींद भी नहीं आयी "
मौनमोहन, "अरे बाबा, क्या हुआ ...क्या परेशानी थी उन्हें ?"
राउल बाबा," परेशानी कुछ खास नहीं पर कल जबसे होस्नी मुबारक के गद्दी छोड़कर भाग जाने कि खबर सुनी है तब से मम्मी कुछ परेशान सी है !"
मौनमोहन, "अरे बाबा इसमे कौन सी परेशानी की बात है ...वो तो मिस्त्र था कोई भारत थोड़े ही जहाँ क्रांति हुयी है! ख्वामख्वां परेशान है ,मैडम जी ! हम बात करेंगे उनसे ! "
राउल, " अरे यही तो परेशानी की बात है ...वो कह रही थी कि अगर कल भारत में भी ऐसे ही जनता का आक्रोश उबल पड़ा तो हमारा क्या हाल होगा !"
मौनमोहन. "आईला, ये तो मैंने सोंचा ही नहीं ...! पर बाबा इसमे मैडम और आपके परेशान होने की क्या बात है ...परेशान तो मुझे होना चाहिए न ?!
राउल, "अच्छा तो हमारे लिए ये परेशानी की बात कैसे नहीं है ? और आपके लिए ये परेशानी की बात कैसे है ... बताओ तो मुझे...? "
मौनमोहन, " अरे सीधी सी बात है बाबा....अगर ऐसा होता भी है तो आप अपने मामा के घर और आपकी मम्मी अपने मायके में चली जाएँगी....अर्थात आप सभी लोग सपरिवार इटली शिफ्ट हो जाओगे ....पर मेरा क्या होगा ..मै कहाँ छिपूंगा जाके ..? :-( "
राउल हँसते हुए, "हा हा हा हाँ सो तो है ...वैसे इस सिचुएशन में एक कहावत फिट बैठती है ...!"
मौनमोहन, "कौन सी कहावत ...बाबा...कहो तो सही ..!"
राउल, "अरे वही कहावत...कि, 'धोबी का गधा ...घर का न घाट घाट का'! "
मौनमोहन, " अरे बाबा कितना समझाया लेकिन आप बाते सभी गलत-सलत ही बोलते है....धोबी का गधा नहीं 'धोबी का कुत्ता...घर का न घाट घाट का !'...वास्तव में ...मै तो कहीं का नहीं रहूँगा तब अगर ऐसा हुआ तो :-( .. ...!!
अब तो लीबिया में भी गड़बड़ हो चुकी और अपने जंतर मंतर पर भी। लिखिये कुछ नया, आनंददायक रही वार्ता। लेकिन क्या इतना बोल लेते हैं हमारे MM?
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