Monday, July 5, 2010

प्राचीन भारत मे धातु विज्ञानं की उन्नत परंपरा

आपको बताना चाहूँगा क़ि आज जो दुनिया के वैज्ञानिक बेस्ट क्वालिटी  क़ि जो स्टील बना रहे है उसमे भी ये गुण नहीं है क़ि वह जंग रहित हो| परन्तु भारत में दशवीं शताब्दी में जन्गरहित स्टील बनता था और काफी बड़े स्तर पर स्टील का निर्माण होता था| जहा १० वीं  शताब्दी के निर्माण है वहा पर अगर तब के लोहे  का इस्तेमाल हुआ है उस लोहे में एक इंच भी जंग नहीं लगा है भारत में अब भी ऐसे कई घंटे ,दिल्ली के मेहरावली में स्थित  मीनार  इसकी जीती जागती मिसाले है |अंग्रेजों के दस्तावेज बताते है क़ि एक अंग्रेजी धातुविज्ञानी विलियम स्कॉट भारत में अभ्यास के लिए आया था| उस विलियम स्कॉट के अनुसार भारत  में  कम से कम २०००० से अधिक फैक्ट्रियां है भारत में स्टील बनाने की| वो कहता है की भारत में जो लोग इस कम में लगे हुए है वो शुशिक्षित लोग है भले ही उनके पास डिग्रियां नहीं है |उन लोगो को पता है की कितने तापमान पर जाकर लोहा पिघलता है और बेहतर स्टील बनाने के लिए उसमे क्या क्या मिश्रण करना पड़ेगा | आपको मालूम होगा की स्टील बनाना एक हाईटेक कार्य है जीरो टेक्नोलोजी  का कार्य नहीं है | स्टील बनाने के लिए सबसे पहले तो चाहिए ब्लास्ट फर्नेस और वो भी ऐसी फर्नेस जिसमे की १४०० डिग्री C का तापमान उत्पन्न हो सके |अब १४०० डिग्री C तापमान पैदा करने वाली भट्टियाँ (फर्नेस ) स्कॉट के हिसाब से इस देश में २०००० से अधिक है यानी भारत के प्रत्येक गाँव में उपलब्ध है जहा पर कच्चा लोहा मिलता है | उसके अनुसार जो २०००० से ज्यादा प्रोडक्सन यूनिट  है उनका उत्पादन पूरी दुनिया में भेजा जा रहा है बिकने के लिए | स्कॉट के अनुसार ही ईस्ट  इंडिया कंपनी अपने जहाजो के निर्माण के लिए भारत के स्टील का उपयोग करती है और ऐसा जहाज लगभग ८५-९० साल तक चलता है | स्कॉट के अनुसार दुनिया के किसी अन्य देश के पास इतनी उन्नत तकनीकि नहीं है स्टील बनाने की| जब वो इंग्लॅण्ड में जाकर वहा की संसद में कहता है की हम लोगो को भारत में जाकर स्टील बनाना सीखना  चाहिए तो सरकार वहा से कई छात्रों  को भारत में प्रशिक्षण लेने के लिए भेजती है जो की भारत में अगरिया जाती के लोगो से प्रशिक्षण लेते है  स्टील बनाने का |
       अगरिया एक वनवासी जनजाति है भारत में सबसे ज्यादा झारखण्ड में फिर छात्तिसघढ़  में है |जो लोग छत्तीसगढ़ या आसपास के रहने वाले है वो जानते होंगे की छात्तिसघढ़ के सरगुजा जिले में सबसे ज्यादा अगरिया जाती के लोग रहते है | वो आज भी अपनी परंपरा के अनुसार दादा,नाना ,की पीढ़ी से स्टील बनाने का काम कर रहे है बस कमी है तो इतनी की उनके पास मेटेलेरजी(धातु विज्ञानं ) की डिग्री नहीं है | लेकिन ज्ञान इतना है की छोटी सी फर्नेस में १४०० डिग्री का तापमान पैदा कर ले जबकि इतने ही तापमान को पैदा करने में बड़ी बड़ी कंपनियों को करोडो रुपये खर्च करने पड़ते है |

8 comments:

  1. प्राचीन भारत की बहुत विशेषताएं थी .. फिर वापस लाने की आवश्‍यकता है !!

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  2. गौरवपूर्ण लेख आपका,
    इस्पात जैसा सुदृढ,जंगरहित जैसा गौरवशाली!

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  3. zaroorat hai Garv karne ki, apne gauravshaali rashtra par ...

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  4. अर्वाचीनता में प्राचीनता के महत्व को भी याद रक्खें!
    --
    बहुत सुन्दर आलेख!

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  5. यूं ही हम भारतीय होने पर गर्व नहीं करते, और भी गजारों बातें हैं...

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  6. बेहतरीन जानकारी. बहुत खूब!

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  7. अच्छी जानकारी.....
    पहले कभी नहीं पढ़ी .....स्टील के बारे में ऐसी वारता....
    आप को हिन्दी हाइकु बलॉग पर आने का अमंत्रित देते हुए....
    http://hindihaiku.wordpress.com

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