Saturday, May 22, 2010

*खूबी*

आज राकेश बहुत खुश था.पिछले कई दिनों से जब से उसे नौकरी के साक्षात्कार के लिए बुलावा पत्र मिला था,अपनी पढाई ख़त्म होने के बाद एकदम से गुमशुम सा रहने वाला राकेश अब फिर से अपने पढाई के दिनों की तरह ही चहकने लगा था|पूरे सप्ताह भर वो अपने शहर के लगभग सभी मंदिरों में जा-जाकर के भगवान से इस बार सफलता दिलाने की प्रार्थना की थी...आज शाम में जब वो मंदिर में प्रसाद चढ़ाकर घर लौटा तो अपनी बड़ी बहन,जिसकी कई बार शादी सिर्फ दहेज़ न दे पाने के कारन ही टूटी थी,तथा अपनी दो छोटी बहनों को जिन्होंने अभी कुछ महीने पहले ही फीस न भरने के कारन पढाई छोड़ दी थी, और अपनी माँ को जो अक्सर बीमार रहती थी....सबको बुलाकर प्रसाद दिया और कहा की अब भगवान हमारे सभी दुखों को दूर कर देगा|तभी उसके पिताजी भी हाथ में नए जूतों का थैला लेकर आये और राकेश से कहने लगे...."ये लो नए जूते,मैंने आज तुम्हारे पुराने फटे हुए जूते देखे तो शर्मा जी से उधार रुपये लेकर लेते आया,तुम्हारी नौकरी मिलेगी तो पुरानी उधारी के साथ ये भी चुका देंगे.|"
इसी भांति सभी आज घर में बहुत दिनों के बाद आये इस खुशनुमा माहौल में सोने चले गए,पर राकेश को नींद कहा थी,वो तो कल साक्षात्कार के बाद मिलने वाली नौकरी को लेकर रात भर सपनो के असमान में गोता लगाता रहा|भोर में जैसे ही उसकी आंख लगी थी वैसे ही उसकी माँ ने जगा दिया|वो भी जल्द तैयार होकर लगभग उसने जितने भी भगवान के नाम सुन रखे थे सबको मनाने लगा|फिर घर में सबसे आशीर्वाद लेकर और अपने सभी अंकपत्रो के साथ (सभी प्रथम श्रेणी में )तथा अन्य जरूरी कागजात लेकर साक्षात्कार देने के लिए घर से चला....|

यहाँ साक्षात्कार बोर्ड के सदस्यों के द्वारा पूंछे गए अधिकतर सवालो के सही जवाब देता रहा|तभी एक सदस्य ने आई हुयी एक फोन काल को सुनकर राकेश से कहा,"मि० राकेश,आप इस नौकरी के लिए एकदम सही उम्मेदवार थे,परन्तु अब एक ही समस्या है जिससे तुम्हे ये नौकरी नहीं मिल पायेगी"

"क्या समस्या है सर..?"राकेश ने चौंकते हुए पूंछा|

सदस्य ने कहा "मि०राकेश मुझे कहते हुए दुःख हो रहा है कि ये नौकरी विकलांग श्रेणी के लिए आरक्षित कर दी गयी है|"

इतना सुनते ही राकेश ने अपने पेन की निब से अपनी एक आंख फोड़ ली,और बोला "सर,अब तो मै १००% विकलांग हूँ|सर अब तो नौकरी मुझे मिल जाएगी न..?"

"अभी भी नहीं  राकेश ,क्यूंकि अब तुम्हे विकलांगता प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए कम से कम ४ से ६ महीने सरकारी दफ्तरों में भटकना पड़ेगा और तब तक तो किसी और को ये नौकरी मिल जाएगी|" सदस्य ने उत्तर दिया|

नौकरी न मिलने की बात सुनकर राकेश को इतनी पीड़ा हुयी जितनी की उसे आँख फूटने से भी नहीं हुयी थी.|

और वह यह कि,"हे भगवान,तुमने मुझे इतनी खूबियाँ दींथी,अगर मुझे विकलांग बनाकर के एक "खूबी" और दे देते तो तुम्हारा घट क्या जाता..?कहते हुए बेहोश हो गया.....|
तभी पास में ही खड़े एक चपरासी ने आसमान में देखते हुए बोला."भगवान तुमने रावन,कंस आदि कई राक्षसों को तो जीता पर भारत की व्यवस्था से हार ही गए..."

*****सानू शुक्ल*****

18 comments:

  1. मार्मिक कथा..व्यवस्था पर करारा कटाक्ष.

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  2. aah..kitna maarmik...sahi kaha...jaane kab is vyavastha se insaan jeet paayega...

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  3. दर्द भी हकीकत भी
    - नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

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  4. Painful..this shows how insensitive our? system is!!

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  5. bhai waah !

    bahut achha likha...

    swagat hai

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  6. दर्दनाक लेकिन व्यवस्था पर करारी चोट - धन्यवाद्

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  7. सानु शुक्ल जी शुभकामनाएं..स्वागत....! आपका प्रयास हिम्मत का है...अब लगे रहे डटे रहे....आप अच्छा लिखते हैं...

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  8. आपका कहानी मार्मिक त हईये है, देश का दुर्दशा अऊर इंटरभीऊ का जो मजाक बना दिया है लोग उसका सच्चा तस्वीर देखाता है... धन्यवाद!!

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  9. नौकरी की ज़रुरत ऎसी ही होती है कि हम सब कुछ दाँव पर लगाने को तैयार हो जाते हैं.

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  10. bahut achhi kahani likhi hai aapne shyad hum mit jayenge par hamara system thik nahi hone wala.

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  11. पहली बार आके ब्लॉग की यात्रा की ...एक कड़वे सच को उजागर करती है आपकी ये पोस्ट ....देश के तंत्र और व्यवस्था पर गहरा कटाक्ष किया है .....बहुत ही मार्मिक भी है ये ....आम इंसान सरकार की इस व्यवस्था से डरा हुआ है ...अच्छा लिखा है आपने ,,कम उम्र में अच्छा अनुभव है आपको .....बधाई स्वीकारे //ऐसे ही सच को लिखते रहे ..हमारी शुभकामनाये आपके साथ है
    http://athaah.blogspot.com/

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  12. आरक्छण-व्यवस्था पर करारा प्रहार!लेकिन भारतीय समाज की विषमता के मद्ध्येनजर आरक्छण की अनिवार्यता को भी नकारा नहीं जा सकता। भारतीय समाज में निम्न वर्ग(मेहतर,चमार आदि)के प्रति सवर्णों की नफ़रत कोइ दबी छुपी बात नहीं है। इन लोगों को व्यवसाय की भारी परेशानियां हैं। ये लोग अगर अपने व्यवसाय के तौर पर रेस्टोरेन्ट या चाय की होटल लगाना पसंद करें तो अस्पृश्यता में विश्वास रखने वाला समाज क्या उनके व्यवसाय को सफ़ल होने देंगे?जहां तक विकलांग को आरक्छण की बात है यह एक बेहद संवेदन शील मानवीय मुद्दा है। आरक्छण खत्म करने के पहिले जाति आधारित सामाजिक विषमता को खत्म करना होगा और चूंकि ऊंच-नीच की भावना जल्द ही समाप्त नहीं होने वाली है इसलिये आरक्छण का विरोध और समर्थन यूं ही चलते रहेंगे।

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  13. khubsurat rachan ke liye badhaee swikaren !!! ati-umda qism kii post !!!

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  14. समीर जी भाइसाहब,दिलीप जी,नरेन्द्र जी,देवेंद्रा जी,अलबेला खत्री जी,राकेश कौशिक जी,रेक्टर कथूरिया जी,राजीव जी,चला बिहारी ब्लॉंगर बनाने वाले भाई जी,प्रतुल कहनीवाला जी,इमरान अंसारी जी,रजेन्द्र मीना जी,डॉक्टर अशोक जी,सलीम ख़ान जी,भाई योगेश तिवारी जी.......और उन सभी महनुभवों का जो की कहानी को पसंद किए, आप सभी का मई तहे दिल से शुक्रगुज़ार हू की आपने मेरी टूटी फूटी भाषा को इज़्ज़त दी और मेरा हौसला बढ़ाया...आशा है की आप सबसे भविश्य मे इसी भाँति स्नेह और मार्गदर्शन प्राप्त होता रहेगा...
    आपका सानू शुक्ल

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  15. bahut acchi lagi.....gujarish hai....aage bhi aage aacchi acchi rachnaae milengi....

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  16. satsaiyaa ke dohre jyon naavak ke teer ,dekhan me chhoten lagen ghaav karen gambhir .
    khoob likhaa .
    veerubhai1947.blogspot.com

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  17. धन्यवाद शायरी जी,और वीरू भाई जी...

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  18. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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आपके आशीर्वचन हमारे लिए... विश्वाश मानिए हमे बहुत ताक़त मिलती आपकी टिप्पणियो से...!!