चल री सखी पनघट पर उसने पुकार दी है,
कि बन्सरी की मधुर तान अब आने लगी है |१|
भरोसा हो गया है जल्द होंगे साहिलों पर,
कि ये किश्तियाँ लहरों से टकराने लगीं है |२|
ये अँधेरे कुछ समय तक और है तू हौसला रख,
कि ये चिड़ियाँ सुबह के गीत फिर गाने लगीं है |३|
वो समय कुछ और था और ये समय कुछ और है,
कि इसमे आदमी से आदमी की दूरियां बढ़ने लगीं है |४|
नकाब जो चहरे पे है अपने हटा दो मेहेरबां,
कि फलक पर घटाओं की कालिमा छाने लगी है |५|
भँवरे बेचारे फूल के चक्कर लगायें किस तरह,
कि जब कलियाँ टूटकर बाजार में बिकने लगीं है |६|
तुम जैसे भी हो हू-ब-हू कैसे दिखाए आईना,
कि जब चेहरे पे चेहरों की कई परतें लगीं है |७|
-सानू शुक्ल एड0
(लगभग 2 साल पुरानी पोस्ट जो कि ड्राफ्ट में पड़ी थी आज साझा कर रहा हूँ )
क्या बात है ! बेहद खूबसूरत रचना....
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद भाईसाहब :)
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