Wednesday, October 23, 2019

कुछ भी

जिनके पास 
खोने को नहीं होता है 
कुछ भी, 
यकीन मानिए 
उन्ही के पास होता है मौका 
कि वे पा सकते हैं 
कुछ भी!
-SaanuShuklaa

Tuesday, October 22, 2019

डियर एलेक्सा



हेलो एलेक्सा,
ज़रा बताना
कैसा है आज का मौसम
बाहर इस कमरे के अभी!
"काले बादल छाये हुये हैं
सुबह से ही,
दोपहर तक इन बादलों के
बरस जाने की प्रबल सम्भावना हैं...
एहतियातन घर से छाता लेकर निकलें!"
बहुत ख़ूब एलेक्सा...धन्यवाद!
पर सुनो एलेक्सा,
क्या इतनी ही
बख़ूबियत से बता सकोगी
मेरे भीतर
नितांत अंतस में
घट रहे मौसम का हाल भी?
मेरे दूसरे सवाल पर
एलेक्सा चुप रही,
शायद निरुत्तर सी है!
कुछ देर की चुप्पी के बाद
अलेक्सा पुनः बजाती है,
लूप में बज रहे ट्रैक को...
"आमोरे मीयो..दोवे साई तू
ती-स्तो चारकांदो..तेईसोरो मीयो
आमोरे मीयो..
ये कश्ती वाला, क्या गा रहा है
कोई इसे भी, याद आ रहा है
जिसके लिये है, दुनिया दीवानी
या है मोहब्बत, या है जवानी
दो लफ़्ज़ों की है, दिल की कहानी
या है मोहब्बत, या है जवानी"
-©️SaanuShuklaa

Saturday, September 21, 2019

फ्रेंज काफ्का- असाधारण लेखक



अभी पिछले महीने ही लखनऊ अपने एक मित्र जो कि गम्भीर बीमारी के चलते घर पर ही पिछले कई महीनो से आरामफर्मा हैं, का हालचाल लेने गया था कि उन्होने मुझे आते समय काफ्का की कुछ किताबे दी कि पढ्ने के बाद उन्हे लौटा दुंगा । अब पढना तो अपने प्रिय शगल में से एक रहा है (यद्यपि फरवरी २०१८ से जुलाई २०१९ तक मात्र एक या दो किताबें ही पूरी हो सकीं थी हमसे)| अपने मित्र के उत्तम स्वास्थ्य हेतु शुभकामनाओं के साथ ही तमाम धन्यवाद कि उनके वजह से ही एक बेहतरीन लेखक को पढने का मौका मिला|
अपने ४१वे जन्मदिन से मात्र २१ दिन दूर ११ जून, 1924 की देर दोपहर के दौरान जब प्राग के न्यू यहूदी कब्रिस्तान में एक साधरण समारोह में, 20वीं सदी के सबसे प्रभावशाली लेखकों में से एक, काफ़्का को एक ताबूत मे मानो उसके जिंदगी भर की तमाम परेशानियो, उलझनो व उतार चढावो से दूर आराम करने के लिए रखा गया था जिनकी एक सप्ताह पहले ही वियना के बाहर स्थित एक अस्पताल में तपेदिक से मृत्यु हो गई थी। काफ्का के अंतिमसंस्कार के कुछ देर बाद काफ्का के माता-पिता ने काफ्का के परम मित्र मैक्स ब्रोड को काफ्का के कमरे मे वस्तुओ की सूची बनाने हेतु भेजा जहाँ मैक्स ने दराजो से कुछ पांडुलिपियाँ खोज निकाली जो कि साहित्य जगत का भाग्य बदल देने मे सक्षम थीँ और उन्ही मे काफ्का का अपने दोस्त मैक्स के लिये एक खत था जिसमे लिखा थ, “यहाँ इन पांडुलिपियोँ मे मेरा अंतिम सब कुछ है जो मैंने लिखा है: मेरे इन लेखों में वो किताबें भी हैं जो इन सबसे अलग हो सकती हैं: "जजमेंट," "द स्टोकर," "मेटामोर्फोसिस," "पेनल कॉलोनी," "कंट्री डॉक्टर," और लघुकथा "हंगर आर्टिस्ट" ...मेरा तुमसे निवेद्न है...कि इन सभी पांडुलिपियो को जला दीजिये, और मैं तुमसे जल्द से जल्द ऐसा करने की विनती करता हूं।“ हलांकि काफ्का के लेखन का बहुत बडा हिस्सा उसने खुद ही अपने जीवित रह्ते हुये नष्ट कर दिया था। परंतु जब मैक्स ने काफ्का का यह लेखन जिसमें नोटबुक, पांडुलिपियां, पत्र और रेखाचित्र भी शामिल थे, देखा तो उसने उसे जलाने की बजाय प्राकाशित करवाने का निर्णय किया और उसमे से अधिकतर हिस्सा प्रकाशित होकर आज दुनिया के सामने आ सका है। (हलांकि काफ्का ऐसा पह्ला लेखक नही था कि जिसने अपनी रचनाओ को जलाने का निर्णय लिया...१९ ईसा पूर्व रोमन कवि वर्जिल द एनीड अपने लेखन से इतने असंतुष्ट थे कि अपने सम्पूर्ण लेखन को जलाने का आदेश दिया। अंग्रेजी कवि फिलिप लार्किन के निर्देश पर दिसंबर 1985 में मृत्यु से ठीक तीन दिन पहले उनकी सभी डायरी जला दी गई थी, जबकि रूसी लेखक व्लादिमीर नाबोकोव ने इसी तरह द ओरिजनल ऑफ लॉरा के उनके खुरदुरे मसौदे को नष्ट करने के निर्देश दिए थे।) वैसे तो अपने जीवनकाल में काफ्का के लेख जो भी प्रकाशित हुआ, ने उन्हें कोई मान्यता, कोई प्रसिद्धि, कोई आलोचना और कोई साहित्यिक पुरस्कार नहीं दिया, ये थोडा अजीब लगता है, यह जानने के बाद और भी कि, शेक्सपियर और गोएथे के अलावा, काफ्का के लेखन पर आधुनिक यूरोपीय साहित्य में सबसे अधिक लिखा व पढा गया है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि काफ्का ने अपनी मृत्यु से पहले एक भी उपन्यास पूरा नहीं किया था। उनके द्वारा प्रकाशित जो थोडा बहुत था भी उसको काफी हद तक पाठको द्वारा नजरअंदाज कर दिया गया था।
काफ्का के लेखन आत्मकथ्यात्मक शैली मे अधिक है जिसपर उसके जीवन मे घटित घट्नाओ का काफी प्रभाव झलकता है मसलन; काफ्का का अपने छोटे जीवनकाल में दो महिलाओं से जुडाव रहा: जूली वोह्रीज़ेक और फेलिस बाउर। लेकिन काफ्का ने ताउम्र न तो इन दोनो से और न ही किसी अन्य से शादी की। उसके अंतरंग संबंधों की विफलताओँ से उसने जानबूझकर आमने-सामने के भावनात्मक संघर्ष करने के बजाय उसने अपने अंतर्मन के इस संघर्ष को जादुई शब्दों में बदल दिया: विशेष रूप से, पत्र लेखन की कला मे। और इस तरह काफ्का के रचना संसार का एक छोटे साहित्यिक पौधे के रूप मे विकसित हुआ जिसमे कि शाखाओ के रूप मे मात्र तीन अधूरे उपन्यास, कुछ दो दर्जन कहानियाँ, कुछ संस्मरण व द्रष्टान्तोँ का एक संकलन, काफ्का की डायरी, पिता व प्रेमिकाओँ को लिखे गये पत्र शामिल हैं कि जिनके आधार पर काफ्का को यूरोपीय सहित्य मे एक अलग स्थान मिला परंतु उनके मरने के बाद। काफ्का को पढ्ते हुये कहीँ कहीँ ऐसा प्रतीत होता है कि उनके लेखन मे अपराधबोध और दन्ड के साथ ही साथ बहुरंगता इतनी व्यापक है कि पाठक खुद के जिंदगी से बडी आसानी से जोड लेता है और शायद इसिलिये ही अतार्किक होते हुये भी उसकी रचनाये प्रशंशनीय बन पडी हैं। मेरे हिसाब से यह भी कह्ना गलत नही होगा कि काफ्का की रचनाये उसके आसपास घट रहे वातावरण के द्वारा नष्ट की गयी उसकी आत्मा की दुखद कहानी से थोडा अधिक है। दूसरी तरफ काफ्का के साहित्य मे जो एक बहुरंगता दिखती उसकी एक प्रमुख वजह शायद उसके जीवन के तमाम उतार चढावो के वावजूद उसके अंतर्मन मे बची रह गयी उनकी रंगीनियत ही है। और वो ऐसी कि काफ्का यहूदी थे, काफ्का वकील थे, काफ्का लेखक थे, काफ्का प्राग के थे यानी कि वो चेक भी थे और जर्मन भी, काफ्का प्रेमी भी थे काफ्का दोस्त भी थे......काफ्का को पढते हुये आप एक नही कई कई काफ्काओँ को सहज रूप से पायेंगे। कोई काफ्का को किसी एक आयामी काफ्का के रूप मे ढूंढ लेने का दावा करे तो यह निश्चित जानिये उसने काफ्का को पाया ही नही। यह एक समस्या भी है और पाठको के लिये आकर्षण भी। इसका अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उनके लेखन पर एक नई विधा विकसित हो गई –काफ्कियूस्क/Kafkaesque. काफ्कियूस्क अर्थात ऐसी अवस्था जिसमे अक्सर भूलभुलैया की स्थिति से बचने का कोई स्पष्ट तरीका नहीं होता...अब तो इस शब्द का प्रयोग वास्तविक जीवन की घटनाओं और परिस्थितियों पर लागू होने लग गया है जो जटिल, विचित्र, या अजीब होती हैं|
         - Adv Sanu Shukla




Tuesday, September 17, 2019

तुम्हारा मौन ‬



तुम्हारा ‬
‪बोलना कुछ भी‬
‪एक बहती हुयी नदी के सदृश है!‬
‪और तुम्हारा मौन ‬
‪अथाह जल रश्मियों से निमग्न ‬
‪ख़ुद में अकूत सम्पदाएँ समेटे ‬
‪दूर दूर तक फैला हुआ एक समुद्र! ‬
‪पर ध्यान रहे‬
‪तुम्हारी तलाश में हो जब कोई समुद्र‬
‪मत डूब जाना ‬
‪किसी नदी की उथली गहराईयों में!‬
- Adv Sanu Shukla

छिछोरे- फिल्म समीक्षा

#Chhichhore
#MovieReviewBySanuShukla

नितेश तिवारी निर्देशित यह फ़िल्म “छिछोरे” बहुत हद तक असल ज़िंदगी के प्लॉट के इर्द गिर्द ही घूमती है और एक महत्वपूर्ण संदेश देने में भी सफल होती है।
“हम सभी अपनी ज़िंदगी में सक्सेस के बाद के प्लान तय करते है। मगर ये कोई नही तय करता कि अगर फ़ेल्योर हुयी तब कैसे निबटेंगे” ये कहकर अनी फूट फूट कर रो पड़ता है। अनी (सुशांत सिंह) जिसका बेटा एक नामी गिरामी इंजीरियरिंग परीक्षा में सफल न हो सकने के कारण बिल्डिंग से कूदकर आत्महत्या करने का प्रयास कर चुका है और अभी अस्पताल में ज़िंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहा है...या यूँ कहे वह ज़िंदगी के लिए लड़ना ही नही चाहता है और डाक्टर के अनुसार जब तक पेशेंट ख़ुद से अपनी ज़िंदगी के लिए नही लड़ेगा इस हालत में दवाइयाँ बहुत कारगर नही साबित हो पायेंगी।
ऐसे में अपने बेटे को ज़िंदगी के प्रति एक आशा की किरण देने हेतु अनी अपने इंजीनियरिंग के दिनो के दोस्तों को जो कि देश विदेश में सेटल हैं, को इमर्जेंसी कॉल देकर बुलाता है।
सभी के साथ जिसमें उससे अलग रह रही अनी की पत्नी माया (श्रद्धा कपूर) के साथ अनी अपने कालेज़ के दिनो को याद कर अपने बेटे को सुनाता है कि कैसे वह सभी अपने कालेज़ में खेलों के मामले में गैंग आफ लूजर्स हुआ करते थे और फिर किस तरह से अनी ने उन सबको यह विश्वाश दिलाया कि हम लोग यह लूजर्स का टैग हटाएँगे...
और एक एक करके अनी अपने कालेज़ वाली कहानी के किरदारों से जो स्वयं अनी की एक कॉल पर अनी के पास मौजूद हैं, उन सबसे अपने बेटे को मिलवाता है। अनी के इस होस्टलर गैंग में पोर्न का लती जिसे सब ‘सेक्सा’ (वरुण शर्मा), छूटते ही गाली से नवाजने में माहिर ‘एसिड’ (नवीन पोलिशेट्टी), हर पल नशे में धुत्त, दारू का शौक़ीन ‘बेवड़ा’ (सहर्ष शुक्ला), ‘मम्मी’ (तुषार पांडेय), और ‘सबका बाप’ इस नाम से कुख्यात ‘डेरिक’ (ताहिर राज भसीन) मुख्य रूप से शामिल थे।
अपने कालेज़ में लूजर्स के रूप में कई मौक़ों पर सार्वजनिक रूप से बेज्जती का सामना कर चुके इन होस्टल नम्बर 4 के इस गैंग ने यही तरीक़ा निकाला कि अगर इस लूजर्स के टैग से मुक्ति पानी है तो होने वाली कालेज़ स्पोर्ट्स चैम्पियनशिप में विजेता बनना ही पड़ेगा। और यह इतना आसान तो नही था जबकि पिछले 15 सालों से होस्टल4 की टीम सबसे निचले पायदान पर आती रही थी और दूसरा यह कि उनका प्रमुख मुक़ाबला था होस्टल10 की टीम से जिसको लीड कर रहा था तेज़ तर्रार खिलाड़ी रैगी (प्रतीक बब्बर)।
एक फ़िल्म के रूप में छिछोरे भूत और भविष्य में सामंजस्य बिठाती नज़र आती है और आप कालेज़ लाइफ़ व उसके बाद की लाइफ़ दोनो एक ही मूवी में देख पायेंगे। इन दोस्तों के इस अप्रत्याशित रियूनियन ने ज़िंदगी और मौत से लड़ रहे राघव का ज़िंदगी के प्रति नज़रिया भी बदल देता है। चूँकि होस्टल लाइफ़ पर बनी इस फ़िल्म में कहीं कहीं आपको 3 इडियट की झलक भी मिलेगी बावजूद इसके छिछोरे ख़ुद के उद्देश्य में सफल होती है और यह हर उस दर्शक को एक संदेश देती हुयी भी सफल होती है कि, जिनके घर में बच्चे बड़े हो रहे हैं...कि जो अपने लिए कभी तैयार फ़्यूचर प्लान जो कि ख़ुद पूरे नही कर पाये अब वो अपने बच्चों पर थोप कर उनसे पूरे करवाना चाहते हैं....उन्हें भी देखनी चाहिए जो किसी भी तैयारी में लगे हैं और जिन्होंने सिर्फ़ सफलता का ही प्लान किया है। जो अपनी होस्टल लाइफ़ को फिर से याद करना चाहते हैं और वो भी जो जानना चाहते हैं होस्टल लाइफ़ के बारे में...वो भी इसे ज़रूर देखें।
कुल मिलाकर यह फ़िल्म आपको पूरे समय ज़बरदस्त हास्य व भावुक कर देने वाले दृश्यों से बांधे रखेगी।
इसके संवाद भी इस फ़िल्म को दर्शकों से जोड़ते हैं जिनमे प्रमुख हैं रूप से हैं..
* कोई भी चीज़ इतनी नही बिगड़ती कि उसे सम्भाला न जा सके।
* दर्द हमें दर्द तब दे सकता है कि जब हम ख़ुद दर्द को दर्द देने की इजाज़त दें।
* जब वर्क को टाइम चाहिये था तब फ़ैमिली ने एडजस्ट किया...अब जब फ़ैमिली को टाइम चाहिये है तब वर्क को एडजस्ट करना ही पड़ेगा।
* तुम्हारा रिज़ल्ट यह डिसाइड नही करता कि तुम लूज़र हो या नही...तुम्हारी कोशिश यह डिसाइड करती है कि तुम लूज़र हो या नही।
* हम हार जीत, सक्सेस फ़ेल्योर में इतना उलझ जाते हैं कि हम भूल गये हैं ज़िंदगी जीना।
* हमने बच्चों को ये तो बताया कि पास होने के बाद क्या-क्या करना है पर फेल होने के बाद का कोई प्लान बनाया ही नहीं!
* शेंपेन की बोतल राघव को देने के बाद मैंने अपने बेटे (राघव) को कहा कि जैसे ही वो एग्जाम क्लियर कर लेगा, बाप बेटे साथ बैठकर सेलिब्रेट करेंगे। लेकिन मैंने ये तो उससे कहा ही नहीं कि अगर फ़ेल हो गया तो हम क्या करेंगे?"
* दस लाख बच्चों में से दस हज़ार बच्चे ही पास होते हैं पर बचे हुए नौ लाख नब्बे हज़ार बच्चों के पास कोई प्लान है ही नहीं।
फ़िल्म का संगीत भी इस फ़िल्म के साथ सामंजस्य बिठाता हुआ चलता है और किसी भी गाने में ये नही लगता कि इसे ज़बरदस्ती डाला गया है।
एक चीज़ जो अखरने वाली है वो है इस फ़िल्म का टाइटल....”छिछोरे” जबकि पूरी फ़िल्म में छिछोरेपने जैसा कुछ भी नही था....शायद इसी टाइटल के कारण ही गम्भीर दर्शकों का एक बहुत वर्ग इस फ़िल्म के शुरुआती दो दिन दूर रहा। आप फ़िल्म के नाम से कल्पना ही नही कर सकते कि यह फ़िल्म इतना महत्वपूर्ण संदेश समाज को देती हुयी सफल हो पा रही है। आज रविवार है...जाइये आप भी अपने परिवार के साथ इसे देख आइये..अच्छी फ़िल्मे वैसे भी कम बन रही इन दिनो। मेरी तरफ़ से 8/10 रहेगा इस फ़िल्म के लिये।
- Adv Sanu Shukla
#MovieReviewBySanuShukla

Saturday, September 14, 2019

स्वर्णाभासित मुस्कुराहटे

सुदूर पर्वतों पर
जैसे सूरज ने
भेजी हों
अपनी अनुशासित किरणें
ताकि तुम्हारी प्यारी सी
मुस्कुराहटों में भरे जा सकें
बहुत सारे ख़ूबसूरत रंग...
कि बाद रंग भरने के
तुम्हारा मुस्कुराता हुआ चेहरा
दैदीप्यमान हो चमक उठे
स्वर्णाभासित मुस्कुराहटों के साथ!!


-@SaanuShuklaa

फ़्रांज काफ़्का की एक कहानी




अपनी मृत्यु से एक साल पहले, फ्रांज काफ्का को एक बहुत ही असामान्य अनुभव हुआ। बर्लिन के स्टेगलिट्ज़ पार्क में टहलते हुए, उन्हें एक लड़की रोती हुई मिली: उसने अपनी गुड़िया खो दी थी।
काफ्का ने उस लड़की से उसकी गुड़िया को खोजने की मदद करने की पेशकश की और अगले दिन उसे उसी जगह मिलने के लिए तैयार किया।
अगले दिन गुड़िया को खोजने में असमर्थ काफ़्का ने स्वयं से एक पत्र लिखा जिसे गुड़िया द्वारा "लिखा" एक पत्र बताया और जब वे उस लड़की से उसी पार्क में फिर से मिले तो उसे उसकी गुड़िया का वही पत्र पढ़कर सुनाया:
- “प्लीज रोओ मत, मैं दुनिया देखने के लिए ट्रिप पर गयी हुयी हूं। मैं आपको अपने कारनामों और अनुभवों के के बारे में लिखती रहूँगी... :तुम्हारी प्यारी गुड़िया"
और इस तरह ऐसे कई पत्रों की शृंखला की शुरुआत हुयी।
दुबारा जब जब काफ़्का और वह लड़की मिले, तो उन्होंने काल्पनिक परंतु रोमांच से भरपूर व सावधानीपूर्वक लिखे गये प्यारी गुड़िया के पत्रों को हर बार पढ़ा। इस तरह लड़की को सुकून मिलता रहा। और फिर एक दिन जब बैठकें समाप्त हो गईं, तो काफ्का ने उस लड़की को एक गुड़िया दी परंतु वह स्पष्ट रूप से मूल गुड़िया से अलग दिखती थी। साथ ही पत्र में लिखा था:
-"मेरी यात्राओं ने
मुझे इस क़दर बदल दिया है ... तुम्हारी ही, प्यारी गुड़िया"
कई साल बाद, अब बड़ी व समझदार हो चुकी उसी लड़की को एक नोट मिला जो उसकी मेज़ के अंदर किसी अनजान दरार में छिप गया था। संक्षेप में, उस नोट में लिखा था:
"आपके द्वारा प्यार की जाने वाली हर चीज के खो जाने की बहुत संभावना है, लेकिन अंत में, प्यार एक अलग तरीके से अलग रूप में वापस अवश्य आयेगा।"
:फ़्रांज काफ्का
अनुवाद: @SaanuShuklaa
चित्र: Marlene López