अरे देखो तो
इन पर्वतों के कन्धों पर
लदे है ये
शरारती बच्चों क़ि तरह
शरारत करते हुए
खेलते उमड़ते घुमड़ते बादल|
ठीक वैसे ही
जैसे क़ि मेरे दिमाग पर
मेरी याददाश्त पर लदे हों
बरस जाने को
एक दम आतुर
तुम्हारी याद के बादल...!!
इन पर्वतों के कन्धों पर
लदे है ये
शरारती बच्चों क़ि तरह
शरारत करते हुए
खेलते उमड़ते घुमड़ते बादल|
ठीक वैसे ही
जैसे क़ि मेरे दिमाग पर
मेरी याददाश्त पर लदे हों
बरस जाने को
एक दम आतुर
तुम्हारी याद के बादल...!!
सुन्दर रचना है!
ReplyDeleteवाह! खूब कहा!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत तुलना की है ..
ReplyDeleteसुन्दर कविता.सुन्दर ख्याल.
बरस जानो दो यादो को...रोकना नहीं ......खुद ही भींग जाओ
ReplyDeleteachchha lagaa padhkar....badhiya
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर...... आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा ये नन्ही बूंदे तन मन को भिगा गई.......
ReplyDeletebahut badhiya ......www.gaurtalab.blogspot.com
ReplyDeleteसभी महनुभवों का हौसला अफजाई के लिए हम हृदय की गहराई से आप सभी के अभारी है ...!!
ReplyDeletesunder kavita.........
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