Saturday, July 24, 2010

बरसात











पानी बरसा धरती में खिल उठीं कोपलें
और मिट गयीं धरती में सब पड़ी दरारें
        पेड़ो पर फिर पत्ते झूमे
       आँखों में छाई हरियाली
       कोयल ने छेड़ी है फिर से
       वही पुरानी कूक निराली
मन यही कर रहा है की बस वह सुनते जाएँ
        जड़ चेतन  सब झूम रहे है
        मिल कर गाते मेघ मल्हारें
        बिना रुके तुम बरसो बादल
        छा जाओ मन मंडल पर
मन में आता है की पंक्षी सा हम खूब नहाये,
        खेतों  में फसलें लहलायें
        कृषकों के चहरे मुसकाएं
        झूमे गाँव आज फिर मस्ती में
       और ख़ुशी भारत की हर बस्ती में
मन यही मनाता बादर अपना तन मन वारे...!!

8 comments:

  1. बारिश के बाद धरती पर होने वाले के परिवर्तन को बखूबी लिखा है...अच्छी प्रस्तुति

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  2. एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
    आपकी चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं!

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  3. बेहतरीन रचना.

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  4. बहुत खूब...बरसात का सजीव चित्रण

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  5. समय से वार्तालाप करती इस रचना के लिए बधाई.

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  6. barsat ka sunder chitran........

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  7. संगीता जी,शिवम जी,समीर जी भाईसाहब,काजल कुमार जी भाईसाहब ,विजय प्रकाश जी भाईसाहब,संध्या गुप्ता जी,सुमन जी आप सभी का बहुत बहुत आभार कृपया अपना स्नेह यूँही बनाए रहे ...!!

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आपके आशीर्वचन हमारे लिए... विश्वाश मानिए हमे बहुत ताक़त मिलती आपकी टिप्पणियो से...!!