जिनके पास
खोने को नहीं होता है
कुछ भी,
यकीन मानिए
उन्ही के पास होता है मौका
कि वे पा सकते हैं
कुछ भी!
-SaanuShuklaa
खोने को नहीं होता है
कुछ भी,
यकीन मानिए
उन्ही के पास होता है मौका
कि वे पा सकते हैं
कुछ भी!
-SaanuShuklaa
अपने ४१वे जन्मदिन से मात्र २१ दिन दूर ११ जून, 1924 की देर दोपहर के दौरान जब प्राग के न्यू यहूदी कब्रिस्तान में एक साधरण समारोह में, 20वीं सदी के सबसे प्रभावशाली लेखकों में से एक, काफ़्का को एक ताबूत मे मानो उसके जिंदगी भर की तमाम परेशानियो, उलझनो व उतार चढावो से दूर आराम करने के लिए रखा गया था जिनकी एक सप्ताह पहले ही वियना के बाहर स्थित एक अस्पताल में तपेदिक से मृत्यु हो गई थी। काफ्का के अंतिमसंस्कार के कुछ देर बाद काफ्का के माता-पिता ने काफ्का के परम मित्र मैक्स ब्रोड को काफ्का के कमरे मे वस्तुओ की सूची बनाने हेतु भेजा जहाँ मैक्स ने दराजो से कुछ पांडुलिपियाँ खोज निकाली जो कि साहित्य जगत का भाग्य बदल देने मे सक्षम थीँ और उन्ही मे काफ्का का अपने दोस्त मैक्स के लिये एक खत था जिसमे लिखा थ, “यहाँ इन पांडुलिपियोँ मे मेरा अंतिम सब कुछ है जो मैंने लिखा है: मेरे इन लेखों में वो किताबें भी हैं जो इन सबसे अलग हो सकती हैं: "जजमेंट," "द स्टोकर," "मेटामोर्फोसिस," "पेनल कॉलोनी," "कंट्री डॉक्टर," और लघुकथा "हंगर आर्टिस्ट" ...मेरा तुमसे निवेद्न है...कि इन सभी पांडुलिपियो को जला दीजिये, और मैं तुमसे जल्द से जल्द ऐसा करने की विनती करता हूं।“ हलांकि काफ्का के लेखन का बहुत बडा हिस्सा उसने खुद ही अपने जीवित रह्ते हुये नष्ट कर दिया था। परंतु जब मैक्स ने काफ्का का यह लेखन जिसमें नोटबुक, पांडुलिपियां, पत्र और रेखाचित्र भी शामिल थे, देखा तो उसने उसे जलाने की बजाय प्राकाशित करवाने का निर्णय किया और उसमे से अधिकतर हिस्सा प्रकाशित होकर आज दुनिया के सामने आ सका है। (हलांकि काफ्का ऐसा पह्ला लेखक नही था कि जिसने अपनी रचनाओ को जलाने का निर्णय लिया...१९ ईसा पूर्व रोमन कवि वर्जिल द एनीड अपने लेखन से इतने असंतुष्ट थे कि अपने सम्पूर्ण लेखन को जलाने का आदेश दिया। अंग्रेजी कवि फिलिप लार्किन के निर्देश पर दिसंबर 1985 में मृत्यु से ठीक तीन दिन पहले उनकी सभी डायरी जला दी गई थी, जबकि रूसी लेखक व्लादिमीर नाबोकोव ने इसी तरह द ओरिजनल ऑफ लॉरा के उनके खुरदुरे मसौदे को नष्ट करने के निर्देश दिए थे।) वैसे तो अपने जीवनकाल में काफ्का के लेख जो भी प्रकाशित हुआ, ने उन्हें कोई मान्यता, कोई प्रसिद्धि, कोई आलोचना और कोई साहित्यिक पुरस्कार नहीं दिया, ये थोडा अजीब लगता है, यह जानने के बाद और भी कि, शेक्सपियर और गोएथे के अलावा, काफ्का के लेखन पर आधुनिक यूरोपीय साहित्य में सबसे अधिक लिखा व पढा गया है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि काफ्का ने अपनी मृत्यु से पहले एक भी उपन्यास पूरा नहीं किया था। उनके द्वारा प्रकाशित जो थोडा बहुत था भी उसको काफी हद तक पाठको द्वारा नजरअंदाज कर दिया गया था।- Adv Sanu Shukla
काफ्का के लेखन आत्मकथ्यात्मक शैली मे अधिक है जिसपर उसके जीवन मे घटित घट्नाओ का काफी प्रभाव झलकता है मसलन; काफ्का का अपने छोटे जीवनकाल में दो महिलाओं से जुडाव रहा: जूली वोह्रीज़ेक और फेलिस बाउर। लेकिन काफ्का ने ताउम्र न तो इन दोनो से और न ही किसी अन्य से शादी की। उसके अंतरंग संबंधों की विफलताओँ से उसने जानबूझकर आमने-सामने के भावनात्मक संघर्ष करने के बजाय उसने अपने अंतर्मन के इस संघर्ष को जादुई शब्दों में बदल दिया: विशेष रूप से, पत्र लेखन की कला मे। और इस तरह काफ्का के रचना संसार का एक छोटे साहित्यिक पौधे के रूप मे विकसित हुआ जिसमे कि शाखाओ के रूप मे मात्र तीन अधूरे उपन्यास, कुछ दो दर्जन कहानियाँ, कुछ संस्मरण व द्रष्टान्तोँ का एक संकलन, काफ्का की डायरी, पिता व प्रेमिकाओँ को लिखे गये पत्र शामिल हैं कि जिनके आधार पर काफ्का को यूरोपीय सहित्य मे एक अलग स्थान मिला परंतु उनके मरने के बाद। काफ्का को पढ्ते हुये कहीँ कहीँ ऐसा प्रतीत होता है कि उनके लेखन मे अपराधबोध और दन्ड के साथ ही साथ बहुरंगता इतनी व्यापक है कि पाठक खुद के जिंदगी से बडी आसानी से जोड लेता है और शायद इसिलिये ही अतार्किक होते हुये भी उसकी रचनाये प्रशंशनीय बन पडी हैं। मेरे हिसाब से यह भी कह्ना गलत नही होगा कि काफ्का की रचनाये उसके आसपास घट रहे वातावरण के द्वारा नष्ट की गयी उसकी आत्मा की दुखद कहानी से थोडा अधिक है। दूसरी तरफ काफ्का के साहित्य मे जो एक बहुरंगता दिखती उसकी एक प्रमुख वजह शायद उसके जीवन के तमाम उतार चढावो के वावजूद उसके अंतर्मन मे बची रह गयी उनकी रंगीनियत ही है। और वो ऐसी कि काफ्का यहूदी थे, काफ्का वकील थे, काफ्का लेखक थे, काफ्का प्राग के थे यानी कि वो चेक भी थे और जर्मन भी, काफ्का प्रेमी भी थे काफ्का दोस्त भी थे......काफ्का को पढते हुये आप एक नही कई कई काफ्काओँ को सहज रूप से पायेंगे। कोई काफ्का को किसी एक आयामी काफ्का के रूप मे ढूंढ लेने का दावा करे तो यह निश्चित जानिये उसने काफ्का को पाया ही नही। यह एक समस्या भी है और पाठको के लिये आकर्षण भी। इसका अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उनके लेखन पर एक नई विधा विकसित हो गई –काफ्कियूस्क/Kafkaesque. काफ्कियूस्क अर्थात ऐसी अवस्था जिसमे अक्सर भूलभुलैया की स्थिति से बचने का कोई स्पष्ट तरीका नहीं होता...अब तो इस शब्द का प्रयोग वास्तविक जीवन की घटनाओं और परिस्थितियों पर लागू होने लग गया है जो जटिल, विचित्र, या अजीब होती हैं|