Tuesday, September 17, 2019

तुम्हारा मौन ‬



तुम्हारा ‬
‪बोलना कुछ भी‬
‪एक बहती हुयी नदी के सदृश है!‬
‪और तुम्हारा मौन ‬
‪अथाह जल रश्मियों से निमग्न ‬
‪ख़ुद में अकूत सम्पदाएँ समेटे ‬
‪दूर दूर तक फैला हुआ एक समुद्र! ‬
‪पर ध्यान रहे‬
‪तुम्हारी तलाश में हो जब कोई समुद्र‬
‪मत डूब जाना ‬
‪किसी नदी की उथली गहराईयों में!‬
- Adv Sanu Shukla

5 comments:

  1. बहुत खूब

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  2. बहुत ही सुन्दर सृजन आदरणीय
    सादर

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    1. बहुत बहुत आभार मैम

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  3. बहुत बहुत आभार सर

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